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संतिकर स्तवन । “सुरिंदा' सुरेन्द्र 'जिणभत्ते जिनेश्वर के भक्तों का 'सया चि' सदैव ‘रक्खंतु' रक्षण करें ॥४॥
भावार्थ---सरस्वती त्रिभुवनस्वामिनी और लक्ष्मी, ये देवियाँ तथा गणिपिटक (बारह अङ्ग) का अधिष्ठायक यक्षराज, ग्रह, दिक्पाल और इन्द्र, ये सब जिनेश्वर के भक्तों की हमेशा रक्षा करें ॥ ४ ॥ में रक्खंतु मम रोहिणी, पन्नत्ती वज्जसिंखला य सया।
वज्जंकुसि चक्केसरि, नरदत्ता कालि महकाली ॥५॥ गोरी तह गंधारी, महजाला माणवी अ वहरुट्टा । अच्छुत्ता माणसिआ, महमाणसिआउ देवीओ ॥ ६ ॥
अर्थ-रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृङ्खला, वजाङ्कुशी, चक्रेश्वरी, नरदत्ता, काली, महाकाली, गौरी, गान्धारी, महाज्वाला, मानवी, वैरोट्या, अच्छुप्ता, मानसिका और महामानसिका, ये
सोलह] देवियाँ मेरी हमेशा रक्षा करें ॥ ५ ॥ ६ ॥ जिक्खा गोमुह महजक्ख, तिमुह जक्खेस तुंबरु कुसुमो। मायंगविजयअजिआ, बंभो मणुओ सुरकुमारो ॥७॥ + रक्षन्तु मां रोहिणी प्रज्ञप्तिवज्रशृङखला च सदा । वज्राङ्कशी चक्रेश्वरी नरदत्ता काली महाकाली ॥५॥ गौरी तथा गान्धारी महाज्वाला मानवी च वैरोट्या ।
अच्छुप्ता मानसिका महामानसिका देव्यः ॥६॥ $ यक्षा गोमुखो महायक्षस्त्रिमुखो यक्षेशस्तुम्बरुः कुसुमः।
मातजविजयाजिताः ब्रह्मा मनुजः सुरकुमारः ॥७॥
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