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प्रतिक्रमण सूत्र ।
* शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखीभवतु लोकः ॥२॥ अहं तित्थयरमाया, सिवादेवी तुम्हनयरनिवासिनी । अम्ह सिवं तुम्ह सिवं, असिवोवसमं सिवं भवतु स्वाहा || ३ || उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे || ४ || सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५ ॥ अर्थ -- संपूर्ण जगत् का कल्याण हो, प्राणि-गण परोपकार करने में तत्पर हों, दोष नष्ट हों, सब जगह लोग सुखी हों ॥२॥ मैं शिवादेवी तीर्थकर की माता हूँ और तुम्हारे नगरों में निवास करने वाली हूँ, हमारा और तुम्हारा कल्याण हो और उपद्रवों की शान्ति हो । कल्याण हो स्वाहा ॥ ३ ॥ अर्थ - पूर्ववत् ॥ ४ ॥ अर्थ - पूर्ववत् ॥
५ ॥
५९ - संतिकर स्तवन ।
* संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जयसिरीइ दायारं । समरामि भत्तपालग, निव्वाण गरुडकयसेवं ॥१॥ अन्वयार्थ - - 'संतिकर' शान्ति करने वाले, 'जगसरणं' जगत् के शरणरूप, ' जयसिरीइ दायारं' जय - लक्ष्मी देने वाले
+ अन्त के ये चार श्लोक पूर्वोक्त लिखित प्रति में कतई नहीं है । अत: पीछे से प्रक्षिप्त हुए जान पड़ते हैं ।
* शान्तिकरं शान्तिजिनं जगच्छरणं जयश्रियाः दातारम् ।
स्मरामि भक्तपालकनिर्वाणीगरुडकृत सेवम् ॥१॥
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