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________________ प्रतिक्रमण सूत्र | * वंससद्दतंतिताल मेलिए तिउक्खराभिरामसद्दमीसए कए अ, सुइसमाणणे अ सुद्धसज्जगीयपायजालघटिआहिं । वलयमेहला कलावनेउराभिरामसद्दमीसए कए अ, देवनद्विआहिं हावभावविव्भमप्पगारएहि नच्चिऊण अंगहा र एहिं । वंदिआ य जस्स ते सुविक्कमा कमा तयं तिलोयसव्वसत्तसंतिकारयं, पसंतसव्वपावदोसमेसहं नमामि संतिमुत्तमं जिणं ॥ ३१ ॥ ( नारायओ ।) २७८ अन्वयार्थ – 'भत्तिवसागय भक्ति-वश आई हुई और 'पिंडिअयाहिं' मिली हुईं [तथा ] 'सुर' देवों को 'वररइगुण' उच्च प्रकार का विनोद कराने में 'पंडियआहिं' दक्ष [ ऐसी ] 'देव' देवों की 'वरच्छरसाबहु आहिं' अनेक अनेक प्रधान अप्सराओं के द्वारा 'वंससद्द' बंसी के शब्द 'तति' वीणा और 'ताल' तालों के 'मेलिए' मिलाने वाला, [ तथा ] 'तिउक्खर' त्रिपुष्कर नामक वाद्य के 'अभिरामसद्द' मनोहर शब्दों से 'मीसए' मिश्रित 'कए' किया गया, 'अ' तथा 'सुद्धसज्जगीय' शुद्ध षड्ज स्वर के गीत और 'पायजालघंटिआहिं' पैर के आभूषणों के घुँघरूओं * वंशशब्द तन्त्रीतालमिलिते त्रिपुष्कराभिरामशब्दमिश्र के कृते च, श्रतिसमानने च शुद्धषड्जगीतपादजालघण्टिकाभिः । वलयमेखलाकलापनूपुराभिरामशब्दमिश्रके कृते च, देवनर्तकीभिः हावभावविभ्रमप्रकारकैः नर्तित्वाऽङ्गहारकैः । वन्दितौ च यस्य तो सुविक्रमी क्रमो तर्क त्रिलोकसर्वसत्त्वशान्ति कार कं प्रशान्तसर्वपापदोषमेष अहं नमामि शान्तिमुत्तमं जिनम् ॥ ३१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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