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अजित-शान्ति स्तवन । २७३ है कि जब भगवान् को वन्दन करने के लिये देव-दानव आते हैं, तब वे किस किस प्रकार के वाहन ले कर, कैसा वेश पहन कर, किस प्रकार के परिवार को ले कर और कैसे भाव वाले हो कर आते हैं । इस के बाद यह वर्णन किया है कि वे सभी देवदानव वन्दन, स्तवन आदि करके बहुत प्रसन्न हो कर वापस जाते हैं और अन्त में कवि ने भगवान् को नमस्कार किया है।
.. जल्दी जल्दी आकाश से उतरने के कारण इधर उधर खिसके हुए, हिलायमान और चञ्चल ऐसे कुण्डल, बाजूबन्ध तथा मुकुटों से जिन के मस्तक शोभमान हो रहे हैं, जिन का सारा परिवार खुशी से अलंकारों को पहन कर और अत्यन्त अचरजसहित जल्दी एकत्र हो कर साथ आया है जिन के शरीर उत्तम सुवर्ण तथा रत्नों से बने हुए प्रकाशमान आभरणों से सुशोभित हैं, जिन्हों ने भक्ति-वश शरीर नमा कर और सिर पर अञ्जलि रख कर प्रणाम किया है, जिन्हों ने शत्रुभाव छोड दिया है और जो भक्ति-परायण हैं, ऐसे देव तथा असुर के समूह अपने अपने प्रधान विमान, सुवर्ण के रथ और अश्वी के समूहों को ले कर जिस भगवान् को वन्दन करने के लिय शीघ्र आये और पीछे वन्दन, स्तवन तथा तीन वार प्रदक्षिणापूर्वक प्रणाम करके प्रसन्न हो अपने अपने स्थान को लौट गये ; उस वीतराग और महान् तपस्वी श्रीशान्तिनाथ भगवान् को में भी हाथ जोड़ कर प्रणाम करता हूँ ॥ २२-२५
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