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अजित-शान्ति-स्तवन । २६९ 'थिमि' निश्चल 'बहुसो' अनेक वार 'विबुहाहिव' देवपति के द्वारा 'धणवई' धनपति के द्वारा 'नरवई' नरपति के द्वारा 'थुअ' स्तवन किये गये 'माह' नमस्कार किये गये और 'अच्चिों पूजन किये गये 'तवसा' तप से 'अइरुग्गय' तत्काल उगे हुए 'सरयदिवायर' शरत्काल के सूर्य से 'समहिअ' अधिक 'सप्पमं' प्रभा वाले [और] 'सिरसा' मस्तक नमा कर 'गयणंगण' आकाशमण्डल में 'वियरण' विचरण करके 'समुइ' इकट्ठे हुए 'चारण' चारण मुनियों के द्वारा 'वंदिरं वन्दन किये गये [ऐसे, तथा-]
__ 'असुर' असुरकुमारों से और 'गरुल' सुवर्णकुमारों से 'परिवदिअं' अच्छी तरह वन्दन किये गये 'किन्नर' किन्नरों से
और 'उरग' नागकुमारों से 'नमंसिों नमस्कार किये गये 'कोडिसय' सैकड़ों करोड़ 'देव' देवों से 'संथुअं स्तवन किये गये [और] 'समणसंघ श्रमण-संघ के द्वारा 'परिवदिअं' पूरे तौर से वन्दन किये गये [ऐसे, तथा-] ___'अभयं' निर्भय, 'अणहं' निष्पाप, . 'अरयं' अनासक्त, 'अरुयं' नारोग [और] 'अजिअं' अजेय [ऐसे] 'अजिअं श्रीअजितनाथ को पयओ' सावधान हो कर पणमे' [मैं] प्रणाम करता हूँ ॥ १९-२१ ॥ .
भावार्थ-किसलयमाला, सुमुख और विद्युद्विलसित नामक इन तीनों छन्दों में श्रीअजितनाथ की स्तुति की गई है।
ऋषियों ने विनय से सिर झुका कर और अञ्जलि बाँध कर जिस की अच्छी तरह स्तुति की है, जो निश्चल है, इन्द्र, कुबेर और चक्रवर्ती तक ने जिस की वार वार स्तुति, बन्दना और
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