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प्रतिक्रमण सूत्र ।
रात्रिक-प्रतिक्रमण की विधि । पहले सामायिक लेवे। पीछे "इच्छामि०, इच्छा०, कुसुमिणदुसुमिण-उड्डावणी-राइयपायच्छित्त-विसोहणत्थं काउस्सग करूं ? इच्छ, कुसुमिण-दुसुमिण-उड्डावणी-राइयपायच्छित्त-विसोहणत्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थ०" पढ़ कर चार लोगस्स का काउस्सग्ग पार के प्रकट लोगस्स कह कर "इच्छामि०, इच्छा, चैत्यवन्दन करूं ? इच्छं," जगचिन्तामणि-चैत्यवन्दन, जय वीयराय तक कर के चार खमासमण अर्थात् “इच्छामि० भगवानहं, इच्छामि आचायेहं, इच्छामि० उपाध्यायहं, इच्छामि० सर्वसाधुहं" कह कर "इच्छामि०, इच्छा०, सज्झाय संदिसाहुं ? इच्छं । इच्छामि०, इच्छा०, सज्झाय करूं ? इच्छं" कह कर भरहेसर की सज्झाय कहे । पीछे "इच्छामि०, इच्छा०, राइयपडिकमणे ठाउं ? इच्छं" कह कर दाहिने हाथ को चरवले पर या आसन पर रख कर "सव्वस्सवि राइयदुचिंतिय०" इत्यादि पाठ कहे। बाद 'नमुत्थुणं' कह कर खड़ा हो के "करेमि भंते०, इच्छामि०, ठामि०, तस्स उत्तरी०, अन्नत्थ०' कह कर एक लोगस्स का कायोत्सर्ग पार के प्रगट "लोगस्स, सव्वलोए०, अन्नत्थ०' कह कर एक लोगस्स का कायोत्सर्ग पार के "पुक्खरवरदीवड्ढे०, सुअस्स भगवओ०, वंदणवत्तिआए०, अन्नत्थ०' पढ़ कर अतिचार की आठ गाथाओं का कायोत्सर्ग पार के "सिद्धाणं बुद्धाणं०" कहे।
१-यह काउस्सग्ग रात्र में कुस्वप्न से लगे हुए दोषों को दूर करने के लिये किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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