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पच्चक्खाण सूत्र ।
१८५ त्तियागारेणं । पाणहार पोरिसिं, साढपोरिसिं, मुट्ठिसहिर्ज, पच्चक्खाइ; अन्नत्थणाभागेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालणं दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्थेण वा, असित्थेण वा वोसिरह । ___ भावार्थ-सूर्योदय से ले कर दूसरे रोज के सूर्योदय तक तिविहाहार अभक्तार्थ-उपवास-का पच्चक्खाण किया जाता है । इस में पाँच आगार रख कर पानी के सिवाय तीन आहारों का त्याग किया जाता है । पानी भी पोरिसी या साढपोरिसी तक तेरह आगार रख कर छोड़ दिया जाता है; इसी लिये 'पाणहार पोरिसिं' इत्यादि पाठ है।
[(७)--चउविहाहार-उपवास-पच्चक्खाण'। सूरे उग्गए, अब्भत्तद्रं पच्चक्खाइ। चउविहंपि आहारअसणं, पाणं, खाइमं, साइमं; अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ।
भावार्थ-इस पच्चक्खाण में सूर्योदय से ले कर दूसरे
१-जो शुरू से चउविहाहार उपवास करता है, उस के लिये तथा दिन में तिविहाहार का पच्चक्खाण कर के जिस ने पानी न पिया हो, उस के लिये भी यह पच्चक्खाण है । शुरू से चउविहाहार उपवास करना हो तो 'पारिछावणियागारेणं' बोलना और सायंकाल से चउविहाहार उपवास करना हो तो 'पारिट्ठावणियागारेणं' नहीं बोलना चाहिए ।
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