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(२२) प्र० - जीव तथा परमेष्ठी का सामान्य स्वरूप तो कुछ सुन लिया। अब कहिये कि क्या सब परमेष्ठी एक ही प्रकार के हैं या उन में कुछ अन्तर भी है ? उ०- सब एक प्रकार के नहीं होते । स्थूल दृष्टि से उन के पाँच प्रकार हैं अर्थात् उन में आपस में कुछ अन्तर होता है।
(२३) प्र० - वे पाँच प्रकार कौन हैं ? और उन में अन्तर क्या है ? उ०- अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु, ये पाँच प्रकार हैं । स्थूलरूप से इन का अन्तर जानने के लिये इनके दो विभाग करने चाहिए। पहले विभाग में प्रथम दो और दूसरे विभाग में पिछले तीन परमेष्ठी सम्मिलित हैं। क्योंकि अरिहन्त सिद्ध ये दो तो ज्ञान-दर्शन- चारित्र - वीर्यादि शक्तियों को शुद्धरूप में - पूरे तौर से विकसित किये हुए होते हैं । पर आचार्यादि तीन उक्त शक्तियों को पूर्णतया प्रकट किये हुए नहीं होते, किन्तु उन को प्रकट करने के लिये प्रयत्नशील होते हैं । अरिहन्त, सिद्ध ये दो ही केवल पूज्य अवस्था को प्राप्त हैं, पूजक अवस्था को नहीं । इसी से ये 'देव' तत्त्व माने जाते हैं। इस के विपरीत आचार्य आदि तीन पूज्य, पूजक, इन दोनों अवस्थाओं को प्राप्त हैं। वे अपने से नीचे की श्रेणि वालों के पूज्य और ऊपर की श्रेणि वालों के पूजक हैं । इसी से ये 'गुरु' तत्त्व माने जाते हैं ।
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