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________________ वंदित्तु सूत्र। १२५ भावार्थ--इस गाथा में प्रतिक्रमण करने के चार कारणों का वर्णन किया गया है:-- . (१) स्थूल प्राणातिपातादि जिन पाप कर्मों के करने का श्रावक के लिये प्रतिषेध किया गया है उन कर्मों के किये जाने पर प्रतिक्रमण किया जाता है । (२) दर्शन, पूजन, सामायिक आदि जिन कर्तव्यों के करने का श्रावक के लिये विधान किया गया है उन के न किये जाने पर प्रतिक्रमण किया जाता है । (३)जैनधर्म-प्रतिपादित तत्त्वों की सत्यता के विषय में संदेह लाने पर अर्थात् अश्रद्धा उत्पन्न होने पर प्रतिक्रमण किया जाता है । (४) जैनशास्त्रों के विरुद्ध, विचार प्रतिपादन करने पर प्रतिक्रमण किया जाता है ॥४८॥ * खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे । मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झ न केणई ॥४९॥ अन्वयार्थ-मैं] 'सव्वजीवे' सब जीवों को 'खामेमि' क्षमा करता हूँ। 'सव्वे' सब 'जीवा' जीव 'मे' मुझे 'खमंतु' क्षमा करें । 'सव्वभूएसु' सब जीवों के साथ 'मे' मेरी 'मित्ती' मित्रता है। 'केणई' किसी के साथ 'मज्झ' मेरा 'वेर' वैरभाव 'न' नहीं है ॥४९॥ भावार्थ-किसी ने मेरा कोई अपराध किया हो तो मैं * क्षमयामि सर्वजीवान्, सर्व जीवाः क्षाम्यन्तु मे। मैत्री मे सर्वभूतेषु, वैरं मम न केनचित् ॥४९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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