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प्रतिक्रमण सूत्र ।
'सच्चित्ते' सचित्त वस्तु के 'पडिबद्धे' सचित्त से मिली हुई वस्तु के 'अपोल' नहीं पकी हुई वस्तु के 'च' और 'दुप्पोलिअ' दुप्पक्क - आधी पकी हुई - वस्तु के ' आहार' खाने से [ तथा ] 'तुच्छो सहिभक्खणया' तुच्छ वनस्पति के खाने से जो 'देसिअं' दिन में दूषण लगा 'सव्वं' उस सब से 'पडिक्कमे' निवृत्त होता हूँ ॥ २१ ॥
'इंगाली' अङ्गार कर्म 'वण' वन कर्म 'साडी' शकट कर्म 'भाडी' भाटक कर्म 'फोडी' स्फोटक कर्म [इन पाँचों] 'कम्म' कर्म को 'चेव' तथा ' दंत' दाँत 'लक्ख' लाख 'रस' रस 'केस' बाल 'य' और 'विसविसय' ज़हर के 'वाणिज्जं व्यापार को [ श्रावक ] 'सुवज्जए' छोड़ देवे ॥२२॥
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' एवं ' इस प्रकार 'जतपिल्लणकम्मै' यन्त्र से पीसने का काम ‘निल्लंछणं’ अङ्गों को छेदने का काम 'दवदाणं' आग लगाना, 'सरदहतलाय सोस' सरोवर, झील तथा तालाब को सुखाने का काम 'च' और 'असईपोसं' असती - पोषण [ इन सब को सुश्रावक ] 'खु' अवश्य ' वज्जिज्जा' त्याग देवे ||२३||
भावार्थ — सातवाँ वृत भोजन और कर्म दो तरह से होता है । भोजन में जो मद्य, मांस आदि बिलकुल त्यागने योग्य हैं उनका त्याग कर के बाकी में से अन्न, जल आदि एक ही बार उपयोग में आने वाली वस्तुओं का तथा वस्त्र, पात्र आदि बार बार उपयोग में आने वाली वस्तुओं का परिमाण कर लेना । इसी तरह कर्म में, अङ्गार कर्म आदि अतिदोष वाले कर्मों
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