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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । (१) क्वारी कन्या या वेश्या के साथ सम्बन्ध जोड़ना, (२) जिसको थोड़े वख्त के लिये किसी ने रक्खा हो ऐसी वेश्यां के साथ रमण करना, (३) सृष्टि के नियम विरुद्ध काम क्रीडा करना, (४) अपने पुत्र-पुत्री के सिवाय दूसरों का विवाह करना कराना और (५) कामभोग की प्रबल अभिलाषा करना ॥ १५ ॥ १६ ॥ [ पाँचवें अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना ] * इत्तो अणुव्व पं, - चमम्मि आयरिअमप्पसत्थम्मि । परिमाणपरिच्छेए, इत्थ पमायप्पसंगेणं ॥ १७॥ धण-धन्न- खित्त-वत्थू, रूप्प - सुवन्ने अ कुविअपरिमाणे । दुपए चउप्पयम्मिय, पडिक्कमे देसिअं सव्वं ॥ १८॥ अन्वयार्थ' इत्तो' इसके बाद ' इत्थ' इस 'परिमाणपरिच्छेए' परिमाण करने रूप 'पंचमम्मि' पाँचवें 'अणुव्वए' अणुबूत के विषय में 'पमायप्पसंगेणं' प्रमाद के वश होकर 'अप्पसत्थम्मि' अप्रशस्त 'आयरिअ' आचरण हुआ; जैसे: ९६ * इतोऽणुवृते पञ्चमे, आचरितमप्रशस्ते । परिमाणपरिच्छेदे,-ऽत्रप्रमादप्रसङ्गेन ॥ १७ ॥ धन-धान्य-क्षेत्र वास्तु-रूखन्य-सुवर्णे च कुप्यपरिमाण । द्विपदे चतुष्पदे च प्रतिक्रामामि देवसिकं सर्वम् ॥ १८ ॥ ↑ इच्छापरिमाणस्स समणोवासएण इमे पंच; धणधन्नपमाणाइक्कमे वित्तवत्थुपमाणाइक मे हिरन्नसुवन्नपमाणाइकमे दुपयचउप्पयपमाणाइक्कमे कुवियमाणाइकमे । [आवश्यक सूत्र, पृष्ठ ८२५] > Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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