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प्रतिक्रमण सूत्र !
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* इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निमीहिआए । अणुजाण मे मिउग्गहं । निसीहि अहोकायं कायसंफास । खमणिज्जो भे किलामो । अप्प किलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वड़क्कतो ? जत्ता भे ? जवणिज्जं च भे ?
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'इच्छामि खमासमणो' से 'अणुजाणह' तक वोलने में दोनों बार आधा अङ्ग नमाना - यह दो अवनत, जनमते समय बालक की या दीक्षा लेने के समय शिष्य की जैसी मुद्रा होती है वैसी अर्थात् कपाल पर दो हाथ रख कर नम्र मुद्रा करना - यह यथाजात, 'अहोकार्थ', 'कायसंफार्स', 'खमणिज्जो भे किलामो', 'अम्नकि ंताणं बहुसुभेण मे दिवसो वइक्कतो ? ' जत्ता भे ? जवणिज्जं च मे ? इस क्रम से छह छह आवत करने से दोनों वन्दन में - बारह आवर्त (गुरु के पैर पर हाथ रख कर फिर सिर से लगाना यह आवत्त कहलाता है) अवग्रह में प्रविष्ट होने के बाद खामणा करने के समय शिष् तथा आचार्य के मिलाकर दो शिरोनमन, इस प्रकार दूसरे वन्दन में दो शिरोनमन, कुल चार शिरोनमन, वन्दन करने के समय मन वचन और • शरीर को अशुभ व्यापार से रोकने रूप तीन गुप्तियाँ 'अणुजाणह में मिउग्गहूँ' कह कर गुरु से आज्ञा पाने के बाद अवग्रह में दोनों बार प्रवेश करना यह दो प्रवेश, पहला वन्दन कर के 'आवस्सिआए' यह कह कर अवग्रह से बाह निकल जाना यह निष्क्रमण । कुल २५ । आवश्यक नियुक्ति गा० १२०२-४ |
* इच्छामि क्षमाश्रमण ! वन्दितुं यापनीयया नैषेधिक्या । अनुजानीत मे मितावग्रहं । निषिध्य (नैषेधिक्या प्रविश्य ) अधःकार्य कार्यसंस्पर्श ( करोमि ) । क्षमणीयः भवद्भिः क्लमः । अल्पक्लान्तानां बहुशुभेन भवतां दिवसो व्यतिक्रान्तः ? यात्रा भवतां ? यापनीयं च भवतां ?
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