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________________ ३२ प्रतिक्रमण सूत्र । पुरुषों में उत्तम हैं, पुरुषों में सिंह के समान निडर हैं, पुरुषों में कमल के समान अलिप्त हैं, पुरुषों में प्रधान गन्धहस्ति के समान सहनशील हैं, लोगों में उत्तम हैं, लोगों के नाथ हैं, लोगों के हितकारक हैं, लोक में प्रदीप के समान प्रकाश करने वाले हैं, "लोक में अज्ञान अन्धकार का नाश करने वाले हैं, दुःखियों को अभयदान देने वाले हैं, अज्ञान से अन्ध ऐसे लोगों को ज्ञानरूप नेत्र देने वाले हैं, मार्गभ्रष्ट को अर्थात् गुमराह को मार्ग दिखाने वाले हैं, शरणागत को शरण देने वाले हैं, सम्यक्त्व प्रदान करने वाले हैं, धर्म- हीन को धर्म-दान करने वाले हैं, जिज्ञासुओं को धर्म का उपदेश करने वाले हैं, धर्म के नायक अगुए हैं: धर्म के सारथि - संचालक हैं; धर्म में श्रेष्ठ हैं तथा चक्रवर्ती के समान चतुरन्त हैं अर्थात् जैसे चार दिशाओं की विजय करने के कारण चक्रवर्ती चतुरन्त कहलाता है वैसे अरिहंत भी चार गतियों का अन्त करने के कारण चतुरन्त कहलाते हैं, सर्वपदार्थों के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले ऐसे श्रेष्ठ ज्ञानदर्शन को अर्थात् केवलज्ञान - केवलदर्शन को धारण करने वाले हैं, चार घाति - कर्मरूप आवरण से मुक्त हैं, स्वयं राग-द्वेष को जीतने वाले और दूसरों को भी जिताने वाले हैं, स्वयं संसार के पार पहुँच चुके हैं और दूसरों को भी उस के पार पहुँचाने वाले हैं, स्वयं ज्ञान को पाये हुए हैं और दूसरों को भी ज्ञान प्राप्त कराने वाले हैं, स्वयं मुक्त हैं और दूसरों को भी मुक्ति प्राप्त कराने वाले हैं, सर्वज्ञ हैं, सर्वदर्शी हैं तथा उपद्रव - रहित, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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