________________
प्रतिक्रमण सूत्र ।
'तित्थयराणं 'धम-तीर्थ की स्थापना करने वाले, ' सयंसंबुद्धाणं' अपने आप ही बोध को पाये हुए, 'पुरिसुत्तमाणं' पुरुषों में श्रेष्ठ, ' पुरिस-सीहाणं ' पुरुषों में सिंह के समान, 'पुरिसवर-पुंडरीआणं ' पुरुषों में श्रेष्ठ कमल के समान, 'पुरिसवर-गंधहत्थीणं' पुरुषों में प्रधान गन्धहस्ति के समान, ' लोगुत्तमाणं ' लोगों में उत्तम, 'लोग-नाहाणं ' लोगों के नाथ, ' लोग-हि आणं' लोगों का हित करने वाले, ' लोग-पईवाणं' लोगों के लिये दीपक के समान, ' लोग-पज्जोअ-गराणं' लोगों में उदयोत करने वाले, ' अभय-दयाणं ' अभय देने वाले ' चक्खु-दयाणं ' नेत्र देने वाले, ' मग्ग-दयाणं' धर्म-मार्ग के दाता, 'सरण-दयाणं ' शरण देने वाले, ' बोहि-दयाणं ' बोधि अर्थात् सम्यक्त्व देने वाले, ' धम्म-दयाणं ' धर्म के दाता, 'धम्म-देसयाणं ' धर्म के उपदेशक, 'धम्म-नायगाणं' धर्म के नायक ' धम्म-सारहीणं ' धर्म के सारथि, 'धम्म-वर-चाउरंतचक्कवट्टीणं' धर्म में प्रधान तथा चार गति का अन्त करनेवाले अतएव चक्रवर्ती के समान, ' अप्पडिहय-वरनाणदसणधराणं ' अप्रतिहत तथा श्रेष्ठ ऐसे ज्ञान-दर्शन को धारण करने वाले, 'विअट्ट-छउमाणं 'छद्म अर्थात् घाति-कर्म-रहित, 'जिणाणं जावयाणं ' [ राग द्वेष को ] स्वयं जीतने वाले, औरों को जितानेवाले, 'तिन्नाणं तारयाणं' [ संसार से ] स्वयं तरे हुए दूसरों को तारनेवाले ' बुद्धाणं बोहयाणं ' स्वयं बोध को पाये हुए दूसरों को बोध प्राप्त कराने वाले, ' मुत्ताणं मोअगाणं'
Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org