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________________ प्रतिक्रमण सूत्र | 6 अन्वयार्थ' उसमें ' श्री ऋषभदेव स्वामी को ' च ' और 'अजिअं' श्री अजितनाथ को ' वंदे ' वन्दन करता हूँ । 'संभव' श्रीसंभवनाथ स्वामी को, ' अभिनंदणं ' श्रीअभिनन्दन स्वामी को, ' सुमई' श्रीसुमतिनाथ प्रभु को ' पउमप्पहं ' श्रीपद्मप्रभ स्वामी को, ' सुपासं' श्रीसुपार्श्वनाथ भगवान् को ' च ' और ' चंदप्पहं ' श्रीचन्द्रप्रभ ' जिणं ' जिन को ' वंदे ' वन्दन करता हूँ ।' सुविहिं ' सुविहिं ' श्रीसुविधिनाथ - [ दूसरा नाम ] 'पुप्फदंत' श्री पुष्पदन्त भगवान् को, 'सीअल' श्री शीतलनाथ को, 'सिज्जंस' श्री श्रेयांसनाथ को, वासुपुज्जं ' श्रीवासुपूज्य को, ' विमलं ' श्रीविमलनाथ को ' अणतं ' श्रीअनन्तनाथ को, ' धम्मं ' श्रीधर्मनाथ को 'च' और 'संतिं' श्रीशान्तिनाथ 'जिणं' जिनेश्वर को, 'वंदामि' वन्दन करता हूँ । ' कुंथुं ' श्री कुन्थुनाथ को, ' अरं ' श्रीअरनाथ को 'मल्लिं' श्रीमल्लिनाथ को, 'मुणिसुव्वयं' श्री मुनिसुव्रत को, ' च ' और 'नमिजिणं' श्रीनमिनाथ जिनेश्वर को ' वंदे ' वन्दन करता हूँ । 'रिट्ठनेमिं ' श्रीअरिष्टनेमि -श्रीनेमिनाथ को 'पास' श्रीपार्श्वनाथ को ' तह ' तथा 'वद्धमाणं' श्रीवर्द्धमान - श्री महावीर भगवान् को वंदामि वन्दन करता हूँ ।। २-४ ॥ 9 6 भावार्थ - - ( स्तवन ( स्तवन ) | श्री ऋषभनाथ, श्री अजितनाथ, श्रीसंभवनाथ, श्री अभिनन्दन, श्रीसुमतिनाथ, श्रीपद्मप्रभ, श्रीसुपार्श्वनाथ, श्रीचन्द्रप्रभ, श्रीसुविधिनाथ, श्रीशीतलनाथ, श्रीश्रेयांसनाथ, श्रीवासुपूज्य, श्रीविमलनाथ, श्री अनन्तनाथ, श्रीधर्मनाथ, श्री शान्तिनाथ, श्री कुन्थुनाथ, श्री अरनाथ, श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १४ }
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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