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प्रतिक्रमण सूत्र !. चार, चारित्राचार, तपआचार और वीर्याचार इन पाँच आचारों के पालने से पाँच; चलने में, बोलने में, अन्नपान आदि की गवेषणा में, किसी चीज के रखने-उठाने में और मल-मूत्र आदि के परिष्ठापन में ( परठवने में) समिति से--विवेक-पूर्वक प्रवृत्ति करने से पांच; मन, वचन और शरीर का गोपन करने से उनकी असत् प्रवृत्ति को रोक देनेसे तीन; ये अठारह सब मिला कर छत्तीस गुण जिस में हों उसी को मैं गुरु मानता हूँ ॥१-२॥
३-खमासमण सूत्र * इच्छामि खमासमणो ! बंदिउं जावणिज्जाए
निसीहिआए, मत्थएण वंदामि । अन्वयार्थ---'खमासमणो' हे क्षमाश्रमण-क्षमाशील तपस्विन् ! 'निसीहिआए' सब पाप-कार्यों को निषेध करके [ मैं ] 'जावणिज्जाए ' शक्ति के अनुसार 'वंदिउं' वन्दन करना
में निवास न करना, ( ४ ) स्त्री के अङ्गोपाङ्ग का अवलोकन तथा चिन्तन न करना, (५) रस-पूर्ण भोजन का त्याग करना, (६ ) अधिक मात्रा में भोजन-पानी ग्रहण न करना, (७) पूर्वानुभूत काम-क्रीड़ा को याद न करना, (८) उद्दीपक शब्दादि विषयों को न भोगना, (९) पौद्गलिक सुख में रत न होना; [ समवायाङ्ग सूत्र ९ पृष्ट १५] । उक्त गुप्तियाँ जैन सम्प्रदाय में 'ब्रह्मचर्य की वाड ' इस नाम से प्रसिद्ध हैं ।
* इच्छामि क्षमाश्रमण ! वन्दितुं यापनीयया नैषोधिक्या मस्तकेन वन्दे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org