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अज्ञानतिमिरजास्कर.
४ सौत्रामणी अर्थात् मदिरे पोनेके यज्ञका विधान ए आश्वीन, सारस्वत, इं इन तीनों देवतायोंके वास्ते पशुका बलिदान देना. और बृहस्पतिको चौथा पशु देना इंड, सविता तथा वरुण इन देवतायोंकोजी पशु देना चाहिये.
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६ पूनम तथा अमावासके दिनमें और चातुर्मास अनुष्ठान में पशु मारला.
सवनी अनुष्टान में पशुवध करणा.
सात यज्ञांको संस्था कहते है. तिनके नाम अनिष्टोम १ प्रत्यमिष्टोम र नक्थ ३, षोमशी ४, वाजपेय ५, प्रतिरात्र ६,
तोर्याम,
अग्नि तथा शनि इन देवतांको इग्यारा पशु चाहिये. १० वायु देवतांको एक पशु चाहिये,
११ मरा हुआ घोमा और यज्ञ करनेवालेकी स्त्री दोनोंको वस्त्र नींचे ढांकना.
१२ वध करे हूए पशुके टुकमे करके यज्ञ करनेवाले ब्राह्मण आपस में की रीतिसें वांटा करणा तिसका प्रकार कहा है.
श्राश्वलायन श्रौतसूत्र के बारां अध्याय है तिनमें बमें पूर्वक्रतुका स्वरूप लिखा है, और अन्य बनें उत्तरऋतु लिखे है तिनके
नाम
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१ राजसूय, २ गवामयन, ३ गोसह, ४ अश्वमेध, ५ - गिरसऋतु, ६ शाकप्रेध, ७ पंचशारदीय विश्वजित्, ए पौंरिक, १० भरतद्वादशाह, ११ संवत्सरसत्र, १२ महाव्रत, १३ रात्रिसत्र, १४ शतरात्र, १५ स्तोम, १६ द्वादशसंवत्सर, १७ सदस्र - संवत्सर.
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