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अज्ञानतिमिरनास्कर, नही है और दो हाल चलती है. तिनका नाम कएव और माध्यंदिनी.
वेदके हिस्से हेठ लिखे जाते है. संहिता १ ब्राह्मण २ आरण्य ३ नपनीषद् ४ परिशिष्ट ५ इनमें चौथे और पांचमें नागमें सेलनेल बहुत दूधा है. जिसकों वेदका आश्रय चाहियेथा तिसने यह ग्रंथ नवीन रच लीया इस बातमें प्रमाण अल्लोपनिषदका. यह नपनिषद अकबर बादशाहे बनवाई है.
तथा ॥त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति मंत्रब्राह्मणकल्पैश्व ॥ वेदतुल्य इति यास्काचार्येणोक्तः॥
अर्थः-यज्ञरुपी धर्म, मंत्र ब्राह्मण और कल्प ये तीन पुस्तकसे होता है. इस वास्ते कटप अर्थात् सूत्र जे है वे वेद तुल्य है. ऐसें यास्काचार्यने लिखा है. इस वास्ते प्रथम ऋग्वेदका सूत्र आश्वलायन तिसके नदाहरण लिखते है. हरएक शाखाका सूत्र है तिसमें दो नाग होते है. एक श्रौत १ दूसरा गृह्य २. तिनमें श्रौतमें तो यज्ञक्रिया लिखी हुई होती है, और गृह्यमें गृहस्थका धर्म लिखा हुआ होता है. इस ग्रंथकों स्मृति में गिणते है. परंतु अन्य ग्रंथोंसे सूत्रकी बझी योग्यता है. सूत्र वेदतुल्य गिना जाता है. अनेक शाखाके अनेक सूत्र है. तिन सर्वका विषय एक तरेंका है. तिस वास्ते इन सूत्रोमंसें प्रथम आश्वलायन शाखाका श्रौतसूत्र तिसके वाक्य लिखते है. इसमें यहनी मालुम पड जा येगाकी जो दयानंद सरस्वतीजीनें अपने बनाये वेदनाष्यनूमिकामें लिखा है कि अग्निहोत्रसे लेके अश्वमेधके अंत पर्यंत जोजो कर्म करणे है वे सर्व श्रौत गृह्य सूत्रोंसे करणे. यहनी मा. लुम हो जावेगा कि श्रोत गृह्य सूत्र ऐसे दयाधर्मीके बनाये हुये
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