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अज्ञानतिमिरनास्कर. ऐसी कथानी लिख गेमी है. तिससे कर्मका प्रयोजन बांधा है. विधान और मंत्र विनियोग लिखा है. इसीतर अनेक प्रकारके ऋतु चारो वेद और सूत्रों में लिखे है. वेद और सूत्रोंमें यही विषय सर्व ठिकाने है.
उपर लिखी १४ श्रतियांका अर्थः१ यूप न होवे तो परिधिक जानवर बांधना. १७-१३-४ २ वाणियेनेंनी यज्ञ करना. १७-४-५ ३ तिससे वाणीयेकी लक्ष्मीकी वृद्धि होती है. १७-४-६ ४ अग्निष्टोम यज्ञ करनेसे मनुष्य पुण्यलोकमें जाता है
१५-११-११ ५ यह वात जो जानता है सो स्वर्गमें जाता है.१५-१३-२ ६ ब्रह्मदेवके स्थानमें जाता है. १५-१३-४ ७ विघन यज्ञ बताता हूं. १५-१७-१
पूर्वे इंश देवें श्चा करी कि अपना शत्रु किस रीतिसें मरेगा .. तब तिस इंने यह यज्ञ विधिसे करा. १०-१७-१ ए इग्यारे रस्सोंसे ग्यारे पशु ग्यारे यूपसें बांधने २०-३-४ १० यह यज्ञ करें मनोकामना सिह होती है. २०-३-५ ११ अग्निषोम देवनें बकरा देना. १-१४-११ १२ इं और मरुत देवको गाय देनी और मरत देवको
वबमा देना. २२-२४-११. १३ जिसको पशुयोंकी वृद्धिकी श्वा है तिसने यज्ञ करणा
१२-६-२ १५ सोम अने पूषा देवतायोंके अर्थे पशु मारणा. २३-१६-४ इसी तरह सामवेदकी संहिता और तिसके अंतर्गत आठ
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