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________________ प्रथमखम. १३ यह गौण पद है, मुख्य पद नहीं. कितनीक जगें विकल्प करके लिखा है परं मूल वेदके मंत्रमें पालनन इसी शब्दका प्रयोग है; तिस वास्ते मुख्य पद हिंसाहीका मालुम होता है. इसीतरें यजुर्वेदांतरगत तैतरेय शाखाका ब्राह्मण जिसमें संहिताके मंत्रोंका विनियोग लिखा है तिसकों निश्चय करता सर्व यथार्थ मालुम पड़ता है.। इसी शाखाका आरण्यक दस अध्यायरूप है. तिन दसोंके अलग अलग नाम है. पांच नपनीषद् गिणनेमें आते है और पांच कर्मोपनीषद् गिणते है. तिनमें उग ६ अध्याय पितृमेध विषे है. तिसमें ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य मर जावे तब किप्त रीतीसे बालना तिसकी विधि लिखी है. तिस उपर नाराज तथा बौधायन सूत्र है तिसमें इस अध्यायमें जो जो मंत्र है तिनका नपयोग बतलाया है. तिसमें ऐसा लिखा है कि मुरदेके साथ एक गाय मारके तिसके अंग प्रेत अर्थात् मुरदेके अंगो नपर गेरणे. और पीछेचिताको अाग लगानी.और प्रेतकों गामे में घालके अथवा शूके स्कंधे उपर उठवाके ले जाना और इस मररोवाले पुरुषकी स्त्रीकोनी स्मशान तक साथ ले जाना और तिसकों ऐसा कहनाकि तेरा पति मर गया है इस वास्ते जेकर तूनें पुनर्विवाह करना होवेतो सुखसे करले, इसतरेंसें उपदेश करां पीछे पानी ले आवनी ऐसे लिखा है. इस ग्रंथ नपर सायनाचार्यने नाष्य करा है. तिसमें तपशीलवार अर्थात् विवरणसहित वेदके सूत्र मेलके अर्थ व्याख्यान करा दूवा है. पुरुषके मरा पीने तिसके बारवें दिनमें जव तथा बकरके मांसका लक्षण मरणेवालेके संबंधियोंको कराना लिखा है. यह पुस्तक वेदके सर्व पुस्तकोंसें अधिक पवित्र गिण में आता है. वैयरी अर्थात् जैन बौक्षदि मतवाले शत्रुयोंके कानमें इसका एकनी शब्द पाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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