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शुद्धि पत्रम्.
शुद्ध.
कुछ
अशुद्ध. कुछक स्तिष्ट वेदने इस्वीमें वीतमय धमंड
स्त्विष्ट
वेदमें स्वीसनमें वीतन्नय
घमंग
बग
विषेश
विशेष
तो
बुद्धि
यज्ञ
इन
बुट्टि यद शिप्य
शिष्य इव खिप्याणां शिष्याणां लीना,
कुरानी कितकेकतो कितनेकतो सर्व वखन कियाकांममें क्रियाकांडमें इम
इस विधान विधान नाप्य
नाष्य
कुग्नी
सर्व
वखत
Ա १००
१०४
११५
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