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अज्ञानतिमिरनास्कर. चैतन्य साकार, निराकार उपयोग स्वरूप जिसका सो चैतन्य स्वरूप १ परिणमन समय समय प्रति पर अपर पर्यायोमें गमन करना अर्थात् प्राप्त होना सो परिणामः सो नित्य है इसके सो परिणामी कर्ना है अदृष्टादिकका सो कर्त्ता ३ साक्षात् नपचार रहित नोक्ता है सुखादिकका सो साक्षादलोक्ता । स्वदेह परिमाण अपणे ग्रहण करे शरीर मात्रमें व्यापक है ५ शरीर शरीर प्रति अलग रहें ६ अलग अलग अपने अपने करे काँके प्राधीन है ७ इन स्वरूपोका खंमन मंमन देवना होवे तब तत्वालोकालंकारकी लघुवृत्ति देख लेनी. तथा ये आत्मा संख्यामें अनंतानंत है. जितने तिन कालके समय तथा आका श के सर्व प्रदेश है तितने है. मुक्ति होनेसे कदापि सर्वथा संसार खाली नदि होवेगा-जैसे आकाशको मापनेसे कदापि अंत नहि आवेगा. तथा आत्मा अनंतानंत जिस लोकमें रहते है सो असंख्यासंख्य कोमाकोमि जोजन प्रमाण लांबा चोमा नमा नी. चा है. तथा इस आत्माके तीन नेद है बहिरात्मा १ अंतरात्मा २ परमात्मा ३ तहां जो जीव मिथ्यात्वके लक्ष्यसे तन, धन, स्त्री, पुत्र पुत्र्यादि परिवार, मंदिर, नगर, देश, शत्रु, मिवादि इष्टानिष्ट वस्तुओमें रागद्वेषरूप बुझि धारण करता है सो बहिरात्मा है अर्थात् वो पुरुष जवानिनंदी है. संसारिक वस्तु ओमेंदी आनंद मानता है. तथा स्त्री, धन, यौवन, विषय नो. गादि जो असार वस्तु है तिन सर्वको सार पदार्थ समजता है, तब तकदी पंडिताइसे वैराग्य रस घोटता है, और परम ब्रह्मका स्वरुप बनाता है, और संत महंत योगी रूपी बन रहे है जब तक सुंदर उन्नट योवनवंती स्त्री नहि मिलती और धन नदि मिलता है, जब ये दोनों मिले तब तत्काल अबैत ब्रह्मका बैत
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