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द्वितीयखम
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करणा है. एकला साधु अच्छे उपयोगवालाजी तप संयमका नाश करनेवाला है, और प्रतिचार सेवनेवाला है. तीन जवनके स्वामी की आज्ञा विरोधनेंसें एकलपणा सुंदरताको नदि प्राप्त होता है, तथा चाह सूत्रकारः ।
एयस्स परिचाया सुद्धं बाइ विन सुंदरं नलियं । कंमाविपरिशुद्धं गुरु प्राणा वत्तिनो विंति ॥ १२७ ॥ व्याख्या. एयरस गुरुकुल वासके परित्याग सें सर्वथा गुरु कुल बोमनेसें शुद्ध शिक्षा, शुद्ध उपाश्रय, वस्त्रपात्रादिनी सुंदर शोजनिक नदि है. ऐसा कनागमके वेत्ताने कथन करा है. तथाच तडुक्तिः
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'सुई बाइ सुजुत्तो गुरुकुल चागा इगेंद विन्नेन सवर ससर खपिंar घाय पाया ठिवण तुब्लो ॥ १ ॥ श्रस्य व्याख्या. शुद्ध निर्दोष निक्षा लेता हैं. कलह ममत्व त्यागा है जिसने ऐसा नद्यमी जेकर गुरुकुलवास त्यागे तथा सूत्रार्थकी हानि जानके ग्लान रोगी की वैयावृत्त त्याग देवे तिसकों जैनमतमें कैसा जानना जैसा सबर राजाको सरजस्ककी पीछी वास्ते मारला, मारतो देना, परंतु पगां करके गुरुके शरीरका स्पर्श न करना ऐसा पूर्वोक्त एकल विदारीका चारित्र पालना है. कथानक संप्रदाय ऐसा है.
किसी एक संनिवेशमें शबर नामा सरजस्कोंका भक्त एक राजा होता जयां; तिसकों दर्शन देने वास्ते एकदा प्रस्तावे तिसका गुरु मोर पांखके चंद सहित बत्र शिर उपर धारण करता हुआ तहां आया तब तिसका दर्शन राजाने राणी सहित करा तितका मोर पांखका बत्र देखके राशीका मन तिस बनके लेनेको चलायमान हुआ, तब राजाकों कहा, तब राजाने सरजस्क सें मोर पांखात्र मागा, तिस देशमें मोरपीबी, मोरपंख
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