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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर इमकों नही, इस वास्ते हमकों जीवहिंसा न करनी चाहिये. कोई कहतेहै वेदमें हिंसा नहीं, जो हिंसाका अर्थ करतेहै तिनकी नूल है. कोई कहतेहैं मनुष्यकों मांस खानेकी इछा होवे तो यज्ञ करके खावे इस वास्ते ये विधि नहीं, संकोच है. कोई कहतेहै वैदिकी हिंसा पूर्वले जुगोंके वास्ते थी, कलिके वास्तें नहीं, अब शोच विचारके देखीये तो पूर्वोक्त सर्व कल्पनामेंसे एकत्नी सच्ची नहीं. क्योंकि पूर्वलें ऋषि जीव मारके फिर जीता कर देतेरे इस कहने में कोश्नी प्रमाण नहीं १. जोकहतेहै वेदमें हिंसा नहीं तिनोंने वेद पढेही नहीं है . वेदवचनमें जो संकोच कहतेहै सोनी जूठ है क्योंकि अनुस्तरणी इत्यादि अनुष्ठानों में मांसतो नहीं खातेहै तो फेर गौ प्रमुखकी हिंसा किस वास्ते लिखी है, जो काम्य कामके बारते हिंसा है सोनी ईश्वरोक्त बचन नहीं. पांचमा विकल्पनी मिथ्याहै क्योंकि जीस युगमें हिंसा होतीश्री तिसको कलि कहना चाहिये कि जिस युगमें महादयाका प्रकाश दुधा तिसका नाम कलि कहना चाहिये ? यह बमा आश्चर्य है. इस बाम्ने एोक सर्वकल्पना भिय्यादै सच्ची बातो रद है कि जबसें जैन बोनें हिंसाकी बहुत निंदा करी और जगतमें दयाधर्मकी प्रबलता हु तबसें ब्राह्मणों ने हिंसकशास्त्रोंके छिपाने वास्ते अनेक कल्पित युक्तियां लिखी. शाकर भाष्य- जब बौक्ष ब्राह्मणोंने कतल करवाए और जैनमत की रचनाका हेतु. थोमे देशोंमें रह गयाथा तब संवत् ६ वा ७०० के लगनग शंकरस्वामी हुए, तिनोंने विचारा कि जैनबौक्ष्मतमानके लोगोंको वैदिक धर्म अर्थात् यज्ञयागमें गौवध प्रमुख जीव हिंसा करनी वहुत मुशकिल है. वैदिक धर्म नपर निश्चय लाना कठिन है. इस लिये समयानुसार ऐसे नाप्य वनाए, और ग्रंथ रचे कि जिन पर सबका चित्त भाजावे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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