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अज्ञानतिमिरनास्कर तिनोंके चार नाम रख्खे. जौनसे बंद रूप वाक्यथे तिनकों जुदे निकालके तिनमें अनेक देवतायोंकी प्रार्थना है. तिसका नाम ऋग्वेद रख्खा.इस वेदमें जिन देवताओं की प्रार्थना है वे देवता पुराणके रामकृष्णादि देवतायोंसे जुदे है. इस वेदमें अग्नि, वायु, सूर्य, रुक्ष, विष्णु, ६६, वरुण, सोम, नक्त, पुषा इत्यादि देवते गिरो है. वेदकी भिन्न इनकी प्रार्थना वेदमंत्रसे करीहै. जो गायन करनेभिन्न संज्ञा. के मंत्र थे तिसका नाम सामवेद रख्खा. और जिसमें यज्ञ क्रिया बतलाइ है तिसका नाम यजुर्वेद रख्खा, यजमान अर्थात् यज्ञ करनेवाला, पुरोहित अर्थात् मददगार, और चौथा वेद अथर्वण, इसमें अरिष्टशांति इत्यादि लिखाहै. चारवेद अर्थात् संहिता और ब्राह्मण ये वेदहै. वेदोकी उत्प- कोई इनकों अनादि कहता है. कोई कहताहै ब्रह्मात्तिका विविध ।
- के मुखसे प्रगट हुए अर्थात् ब्रह्मका मुख ब्राह्मण, ये वेद है तिनमें वेद निकलेहै. जिस जिस कालमें दयाधर्मीयोंका अधिक जोर होता रहा तिस तिस कालमें नपनिषद् नाग ऋषि बनाते रहे ननमें निर्वृत्ति मार्गकी प्रसंशा लिखी और वैदिक यझकी निंदा, तथाच मुंमकोपनीषत् “इष्टापूर्त मन्यमाना वरिष्ठं नान्यच् यो वेदयंते प्रमूढाः। नाकस्य पृष्टे सुकतेऽनुनूत्वेमं लोकं हीनतरं चाविशन्ति " ॥१०॥
उपनीषद्. नाष्यं ॥ इष्टा पूर्तम् इष्टं यागादि श्रौतं कर्म पूर्व वापीकूपतमागादि स्माः । इत्यादि । नावार्थः-" इष्टापूर्त ए शब्दका अर्थ असाहै. यागादि श्रौत कर्म कुं इष्ट कहेतेहै, वापी, कुआ ओर तलाव बनाना ओ पूर्त कहेतेहै. जो कोई मूढ लोको ए इष्टापूर्त-यज्ञादिक वैदिक कर्मकोही अन्ना जानता है, उसरा श्रेय-कल्याण नहीं जानता है, सो स्वर्गमें सुकृत कर्मका फल लोग के
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