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________________ २५६ अज्ञानतिमिरजास्कर. कुशल ३. अपवाद विशेष कहने में कुशल ४. जाव विषे विधिसार धर्मानुष्ठान करणे में कुशल, ए. व्यवहार गीतार्थ आचरित रूपमें कुशल ६ . इन म्होंमे गुरु उपदेशसें गुण कुशलपलेको पाम्या है अथ इन बदोंका जावार्थ कहते है. उचित योग्य श्रावक भूमिका तक सूत्र पठण करे, प्रवचन माता और ब जीव निकाय अध्ययन पर्यंत आगम सूत्र और असें पढ़े, और अन्यजी पंचसंग्रह, कर्मप्रकृति, कर्मग्रंथादि शास्त्र समूह गुरुगमसें. पण करे, जिनदासवत् इति प्रवचन कुशलका प्रथम नेद. सुले सूत्रका अर्थ स्वभूमिकातक सुगुरु समीपे गीतार्थ गुरु समीप श्रवण करनेसें समुत्पन्न प्रवचन कौशल करके जाव श्रावक होवे, ऋषिन पुत्रवत् इति प्रवचन कुशलका दुसरानेव. अथ नत्सर्पिवादनामा तीसरा चौथा भेद लिखते है. नत्सर्ग और अपवाद जिनमतमें दोनों प्रसिद्ध है, तिनका विषय विभाग करणा, करावणा यथावसरमें सो जाने तात्पर्य यह है कि केवल उत्सर्गही नदी माने, न केवल अपवादही माने किंतु यथावसरमें जो योग्य होवे तो करे. क्योंकि नंचि जगादकी श्र पेक्षा नीची प्रसिद्ध है, और निंचिकी अपेक्षा नंची प्रसिद्ध है. ऐसेदी नत्सर्ग अपवाद दोनों तुल्य है. इस वास्ते यथावसरे दोनोमेंसें [प बहुत देखें तैसे प्रवर्ते, क्योंकि सिद्धांत में जितने · त्सर्ग है तितनेही तिस जगे अपवाद है. इस वास्ते यथावसरे प्रवर्त्ते, दोनों गुणो उपर अचलपुरके श्रावक समुदायकी कथा जननी, इति प्रवचन कुशले तीसरा चौथा नेद. or विधिसार अनुष्टाननामा पंचम नेद लिखते है. धारण करे, पक्षपात करे, विधिप्रधान अनुष्टान में देव गुरु वंदनादिकमें तात्पर्य यह है - विधिसें करणेवालेका बहुमान करे आपनी साम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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