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अज्ञानतिमिरनास्कर शक, शिवशंकर, अईन, जिन त्रिकाल वित् इत्यादि नामोसे कहते है. जब जीवांको प्रबल मिथ्यात्व मोहनीय कर्मका बहुत प्रचार
और प्रबल नदय हुआ तब नोले जीवोने पूर्वोक्त परमेश्वरके नाम अयोग्य अर्थात् कामी, क्रोधी. लोनी, अज्ञानी, स्वार्थ तत्पर जीवोमें आरोप करे. तबसें इस जगतमें अनेक मत बनाय गये है. जिस जीवोमें नोले लोकोने ईश्वरका उपचार करा है तिसका जब चाल, चलन. कर्तव्य वांचने में आता है तब नोले जीवांकी समज पर लांबा नच्छवास लेके हाय ! कहना पड़ता है, इस वास्ते नोले लोकोंको सर्व कल्पित ईश्वरोंको गेमके अढारह दू. षण रहित परमेश्वरकों परमेश्वर मानना चाहिये, जिस्ले सिपदको प्राप्ति होवे. इति सिह पद.
तीसरे पदमें कुल-कुल नसको कहते है जो एक आचार्यकी संतानमें बढत न्यारे न्यारे साधुओक समुदाय होवे.
_ गब उसको कहते है जिसमें बहुत कुलोंका समूह एकग दोवे कौटिकादि गच्छवत्.
संघ चतुर्विध-श्रमण १ श्रमणी २ श्रावक ३ श्राविका ४ तिनमें श्रमण नसकों कहते है, जो तप करे और पांचो इंख्यिकों रागयोदय करके स्वस्वविषयमें प्रवृत्त दुएको थका देवे. तथा श्रमण शब्दको प्राकृत व्याकरणमें समण ऐसा आदेश होता है, इस वास्ते समण शब्दका अन्वर्थ लिखते है. सम कहते है; तुल्य मैत्री नावसे सर्व नूतोंमें, सर्व जीवोंमें, बस स्थावरों में प्रवर्ते, इस वास्ते साधुको समण कहते है. सो साधु ऐसा विचारतें है-कोई मुजको मारे तव जेसें मुजको कुःख प्रिय नहि तैसेही सर्व जीवांको दुःख प्रिय नहि है. ऐसे जान करके मन, वचन, काया करके कोई जीवको न हणे, न
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