SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६ अज्ञान तिमिरजास्कर. श्वर परमात्मा जगतमें अवतार लेता है. किस वास्ते ! साधुओ के नृपकार वास्ते और दुष्ट दैत्योंके नाश करने वास्ते और धर्मके स्थापन करने वास्ते परमेश्वर युग युगमें अवतार लेता है. यद कदना बालक्रीमावत है, क्योंकि परमेश्वर विना अवतार के लिया क्या पूर्वोक्त काम नदि कर शकता है ? कितनेक जोले लोक कहते है कि परमेश्वरके तीन रूप है. पिता १ पुत्र २ पवित्रात्मा ६ ये तीनो एकजी है. तिनमें जो पुत्र था वो इस लोक में श्रवतार लेके और जगतके कितनेक लोकों को अपते मतमें स्थापन करके, तिन इमानवाले नक्तोका पाप लेके आप शूली पर चढा ऐसा लेख वांचके हम बहुत आश्चर्य पाते है. क्या ईश्वर विना अपने पुत्र जे जगवासीओका अंतःकरण शुद्ध नहि कर शकता है ? तथा मनुष्य के पेटके अवतार विना बना बनाया अथवा नवा बनाके अथवा आप पुत्ररुप धारके इस दुनिया में नहि श्रा शकता है जो मनुष्यपीके गर्भ से जन्म लीना ? क्या ईश्वरको प्रथम ऐसा ज्ञान नहि था कि इतनें जीवोंके वास्ते मुजे श्रवतार लेके शूली चढना परेगातो प्रथमदी इनको पापी न होने देऊ ? तथा जक्तोके पापका नाश नहि कर शकता था जिस्सें शूली चढना पका. क्या जक्तजनोंका इतनाही पाप या जो एकवार शूली चढनेसें संपूर्ण फल जोगनेंमें था गया. ईश्वरसें अन्य कोई सरानी बना ईश्वर है जिनसें बोटे ईश्वरको जक्तोके पाप फल जोगनेंमें शूली चढा दीया तथा पुत्र तथा बोटे ईश्वरनें बमी हिम्मत करी जो सर्व भक्तोंकी दया करके सर्वकें पापोका फल आपे जोगना स्वीकार कीया परंतु पिता तथा बडे ईश्वरनें परो. पकार, भक्तवत्सल, परमकृपालु ऐसे पुत्र तथा बोटे ईश्वरकी दया करके पाप नाश रूप बक्षिस न करी तथा जब पिता पुत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy