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________________ हितीयखम. एक तरीखे है, तिसको हम कहते है. हे नोले प्राणी ! यह तेरा कहना लौकिक व्यवहासेंनी विरु६ है. क्योंकि लौकिक व्यवहारमें प्राणी अंगकी तुल्यतासेंनी कितनीक वस्तुओ नहि मांस ऐसा एक सरीखे है, उसको हम कहते है. हे नोले प्राणी ! यह तेरा कहना लौकिक व्यवहारर्सेनी विरुध है. क्योंकि लौकिक व्यवहा. हारमें प्राणी अंगकी तुल्यतासेंनी कितनीक वस्तुओ नहि मांस ऐसा व्यवहार प्रवर्तते है. जैसे गौका दुध लक्ष्य और गौका रुधिर अनक्ष्य, अपनी माताका दूध नक्ष्य और अपनी माताका रुधिरादि अन्नक्ष्य है. तथा स्त्रीपणा करके समाननी है तोनी - पनी माता, बहिन, बेटी, प्रमुख अगम्य है, नार्यादि गम्य है. जेकर सर्व वस्तुओ सदृशही माने तब तो मनुष्य नहि किंतु पशु, कुत्ने, गर्दनादि समान है. प्रत्यक्षमेंनी देखते है कि जे कोई राजे तथा बझे गवर्नर प्रसुखके शरीमें लाता दि मारे तो जीवसें जाये नदि तो सख्त बंदीखाना तो नोगे, और किसी के. गाल गरिब महेनती मजूर प्रमुखके शीरमें लात जूति मारे तो सरकार वैसा दंम नहि देती है. क्या उनके मनुष्य पणेमें कुछ फरक है ? मनुष्यपणे तो कुछ फरक नहि, परंतु तिनके पुण्योंमें फरक है. अधिक पुण्यवानकी अविनय करे तो महा अपराध और दमके योग्य होता है और हीन पुण्यवालेको जुता मारने सेंनी ऐसा नारी दंड योग्य नही होता है. इसी तरें पंचेश्य पशु महा पुण्यवान् है, तिसको मारना और तिसका मांस नक्षण करना महा पाप है, और नरकगतिका देनेवाला है, और अनादि स्थावरोको हिंसा और तिनके शरीरका नक्षण करणेंमें महा पाप नहि है. इस वास्ते अन्नका खाना और मां. सका खाना सरीखा नहि है. शुष्क तर्क दृष्टिने जो मांस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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