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अज्ञानतिमिरनास्कर. जीवांको पुःख नत्पन्न हो गया, नरकमें अनंत कुःख लोगना पडा, ननको निकाल कर क्या सुख दीया ? नन जीवां वास्ते तो ऐसा पुरुषार्थी ईश्वर नहोता तो अच्छा था, वाह ! यही ईश्वरका. पुरुपार्थ है जो बिना प्रयोजन जीवांको पुःख देना ? फेर जो दयानंदजी लिखता है, प्रलयमें निकम्मे सुषुप्ति जैसें पके रहते है तो हम पूछते है परमेश्वरका निकम्मे देखकर क्या पेटमें शूलं नगवे नहीं कुछ काम करतेथे तो परमेश्वरका कौनसा गामा अडका इवा था. जब प्रलयसे निकालनेसें काम करने लगे तब कौनसा दुःख मिट गया. अलबतां ननकों नरक, स्वर्ग, सुख दुःख, पशु पक्षी इत्यादिक अनेक तरेका फल देनेका टंटातो गलेमें जरूर पम गया. यह कहनी दयानंदके. ईश्वरकों लागू पमी निकम्मी ना यनका टटू मुंडे. फैर जो लिखा है प्रलयके पूर्व सृष्ठिमें जीवोंके किये पाप पुण्य कर्मोका फल ईश्वर कैसे दे सक्ता. सक्ता है हम पुछते है ईश्वर ननको फल न देता तो क्या ननके पापोका फल ईश्वरको नोगना पमता था. जेकर कहोगे, नहीं, तो फेर किस लिये उनको दुःखमें माला. जेकर कहोगे ईश्वर न्यायी है, जेकर ननको कर्मोका फल न देवेतो ईश्वरका न्याय नहीं रहता है. जैसे अबन्नी जो कोई चोरी, यारी, खून वगैरे करता है. ननके करनेसे राजाको कोईनी दुःख नही होता है तो नी अपनें न्याय वास्ते राजा ननको दंम देता है. यहनी तुमारा विना विचारका कथन है. क्योंकि जब किसी एक पुरुषनें दुसरेका धन लूट लीया और उसको मार दिया जेकर राजा नसको दंड न देवे तो ननको देख कर दूसरानी ऐसे करे, दुसरेको देख कर तीसरानी ऐसे करे, राजाका तो नय है नहि तबतो आगेको वे विशेष करके नपश्व करें, कितनेक लोक परस्पर लम करमर जावे, बहुत लोक कुःखी होकर उस राजाकों नपुंसक जानकर नस राजाके
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