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________________ १० अज्ञानतिमिरनास्कर. मित हो रहे है इनों नपर ईश्वरने क्या दया करी. इस दया करनेसेंतो ना करनी अही थी. विचारें गरीब जीव सुखसें सोये हवे थे ननका ईश्वरकी दयानं विपदामें काल दिया. किसी आदमी सोतेको जगादेवे तो वो मनमें दुःख मानता है. नन जीवांको तो ईश्वरकी दयाने सोताको जगाकर नरकम माल दीया, वे बिचारें जीव तो ईश्वरकी दयाकी बहुत स्तुति करते होगे. सुज्ञ जनों ! देखीये, यह दया है कि हिंसा है. हम नही जानते ऐसी दया माननेवाले कौनसा मोहको प्राप्त हो रहे है. जे कर कहोगे ईश्वर क्या करे वे जीव ईश्वर आगे विनती करते है, ईश्वर ननकी प्रार्थनाको क्योंकर नंग करे; यह कहेनानी अज्ञानताका सूचक है. क्योंकि प्रश्रमतो उन जीवांके शरीर नही है, वे तालु आदि सामग्री विना बोलनी नही सकते, विनंती करनीतो पुररही, नला, जीन जीवोंको सुखी रचा नननोंकी तो विनती कर. नीनी बन सक्ती है, जिन जीवांको दुःखी रचा वे जीव अपने दुःखी होने वास्ते कैसे विनति करते होंगे. जेकर कहे वे जीव विनती नही करते परंतु नन जीवोंके साथ जो कर्म लगे हुबे है ननका फल नुगताने वास्ते ईश्वर सृष्टि रचता है तो दम पुरते है जेकर ईश्वर नमकों क का फल न जुगतावे तो क्या वे कर्म ईश्वरको :ख देते थे, जो नुनके दुःखसे भर कर सृष्टि रचता है जेकर कहोगे ईश्वरको जीवांके कोनें क्या दुःख दैना था. वो तो अनंतशक्तिमान है. ईश्वर तो फक्त क्रीडावास्तेही सृष्टि र. चता है. वाह ! अच्छा ईश्वर तुमने माना है जो अपनी खेल वास्ते जीवांको अनेक दुःखोंमें गेरता है अपनी खेल वास्ते गरीब जीवांको नरकमें मेरना, रुवाना, पिटाना, रोमी दरिक्षा करना यह दयावानका काम नही. सच है कि चिडियोंकी मौत गवारोंकी हांसी. जेकर वगर विचारें कहे ईश्वर खेल वास्ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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