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अज्ञानतिमिरनास्कर. देव और चक्रांकमंमित शैल सो जिस स्थानमें ले जाय, सो स्थान काशीसेंनी सौगणे अधिक है. ७ म्लेग्के देशमें अथवा पवित्र देशमें जिस स्थानमें चक्रांक रहते है, सो वाराणसीका त्रण यो जनसेंनी अधिक है. जिसका मूलमें सर्व तीयों है जिसका मध्यम सर्व देवता है, और जिसका अग्रन्नागमें सर्व वेद है एसी तुलसीकुं में नमस्कार करता हूं. ए पुष्करादि तीर्थ, गंगा प्रमुख नदीयां और वासुदेव प्रमुख देवता तुलसीका पत्रमें रहेते है. १० पवनसें जैसे रज दूर होता है, तैसे तुलसीकाष्टकी माला देख कर यमराजका दूत दूरसें नाशते है. ११ हे पार्वति, जे पुरुष तुलसीकी माला धारण करके नोजन करते है, सो पुरुष एक एक ग्रासे वाजपेय यझका फल प्राप्त करते है. १२. हे मुनीश्वर, जो पुरुष तुलसीकाष्टकीमाला धारण करके स्नान करते है, सो पुरुष पुष्कर ओर प्रयाग तीर्थमें स्नान करते है. १३ सर्व शास्त्रो देख कर और इसका पुनः पुनः विचार करनेसें एसा सिह होता है के सर्वदा नारायणका ध्यान करना चाहीये. १५ जो ब्राह्मण चक्रका लांउनसे रहित है, उसका क्रियमाण कर्म सब निष्फल होता है वैष्णवोसे ओ विशेष जाणना" १५ जो पुरुष विष्णुका मंत्रसे रहित होता है, ओ पापी पुरात्माका अन्न श्वानकी विष्टा जैसा और नप्तका जलपान मदिराजेसा समजना १३
शैवमतमें ॥ विना नस्मत्रिपुंड्रेण विना रुशदमालया । पूजि तोऽपि महादेवो न तस्य फलदो नवेत् ॥ १ ॥ महापातकयुक्तो वा युक्तो वा चोपपातकैः। नस्मस्नानेन तत्सर्वं दहत्यनिरिवेंधनं ॥१॥ पृथिव्यां यानि तीर्थानि पुण्यान्यायतनानि च । शिवलिंगे च संत्येव तानि सर्वाणि नारद ॥ ३ ॥ महेशाराधनादन्यन्नास्ति सर्भिदायकं । अतः सदा सावधानं पूजनीयो महेश्वरः ॥ ४ ॥
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