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________________ ८६ अज्ञान तिमिरज्नास्कर, कृति करते है, कोई श्रीका चिन्ह धारण करता है. इन दोनो पंथोका परस्पर द्वेष बहुत बढा तब एकने दूसरेके विरुद्ध बहुत शास्त्र लिखे वैष्णali शैवोंकी और शैवोंने वैष्णवोंकी निंदा लिखी. पुराण और ऋषियोंकेजी दूषण लिखे कितनेक पुराण तामसी और कितनेक सात्विक ठहराये वे ऐसे है. “सत्यं पाराशरं वाक्यं सत्यं वाल्मिकमेव च । व्यासवाक्यं क्वचित् सत्यं सत्यं जैमनीवचः ॥ सात्विका मोक्षदा प्रोक्ता राजना स्वर्गदा शुजा । तथैव तामसा देवी निरयप्राप्तिदेतवे ॥ वैष्णवं नारदीयं च तथा जागवतं शुजं । गारुरुं च तथा पाद्मं वाराहं राजसं स्मृतम् ॥ अर्थ - पाराशर वचन सत्य है, वाल्मी कका वचन बी सत्य है. व्यासका वचन कोइकज सच्चा है और जैमिनि का वचन सत्य है. दे देवी, सात्विक मोक्षदायक है, राजसी स्वर्गकुं देती है और तामसी नरकनी प्राप्तिका हेतु है, वैष्णव पुराण, नारद पुराण और जागवत पुराण ए सात्विक है. गरुम पुराण, और पद्मपुराण तथा वराह पुराण राजस है. इत्यादि एक दूसरे के दूषण काढे है वे ये है. ॥ वैष्णवमतमें ॥ ब्राह्मणः कुलजो विद्वान जस्मधारी नवेद्यदि । वर्जयेत्तादृशं देविमद्योष्टिं घटं यथा ॥ वेदांतचिंतामणौ ॥ त्रिमूचं कल्पानां शूझणां च विधीयते । त्रिपुंभूधारणाद् विप्रः पतितः स्यान्न संशयः ॥ २ ॥ यो ददाति द्विजातिभ्यश्चंदनं गोपिमर्दितं । अपि सर्षपमाae पुनात्यासप्तमं कुलं ॥ ३ ॥ ऊर्ध्वपुंभूविहीनस्य स्मशानसदृशं मुखं । अवलोक्य मुखं तेषामादित्यमवलोकयेत् ॥ ४ ॥ प्रज्ञा दानं तपश्चैव स्वाध्यायः पितृतर्पणं । व्यर्थं भवति तत्सर्वमूर्ध्वपुरु विना कृतं ॥ ५ ॥ शालिग्नामोनवो देवोदेवो द्वारावती भवः । जनयोः संगमो यत्र तत्र मुक्तिर्न संशयः ॥ ६ ॥ शालिग्रामोद्रवं देवं शैलं चकांकमंमितं । यत्रापि नीयते तत्र वाराणस्यां शताधिकं ॥ ७ ॥ म्ले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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