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________________ प्रथमखमः ५१ ४ सूयर तथा नैंसके मांससे दश मास तृप्त रहते हैं और ससे तथा कछुके मांससे ग्यार मास तृप्त रहते है. ५ लांबे कानवाले धवले बकरेके मांससे बारा वर्ष तृप्त रहते है. ६ कालशाक महाशटकनामा मत्स्य अथवा गैंमा, लाल बकरा इनभेसे हरेकका मांस देवे मद्यसें और सर्व प्रकारका ऋषिधान्य और वनस्पति रूप जो जंगल में स्वयमेव होता है सो दे. वेतो अनंत वर्ष तक पितर तृप्त रहते है. इसी तरें मनुस्मृतिमें अनेक जगें जीव मारने और मांस खानेकी विधि लिखी है, सो जान लेनी. अथ याज्ञवल्क्य स्मृतिमें आचार अध्याय है, तिसके वचन नीचे लिखे जाते है. गृहस्थ धर्म प्रकरणः महोदं वा महाजं वा श्रीतियायोपकल्पयेत् ॥ १०८ यज्ञेश्वर शास्त्री पत्रे ७५. प्रतिसंवत्सरं त्वया॑स्नातकाचार्यपार्थिवाः । प्रियो विवाहश्च तथा यज्ञे प्रत्यत्विजः पुनः ॥ १॥ अर्थ--श्रौतिय अर्थात् अग्निहोत्री ब्राह्मण अपने घरमें आवे तो बडा बलद अथवा बकरा मोटा तितके नकण वास्ते देना. इस उपर टीकाकार ऐसा लिखता है "अस्वयं लोकविधिष्टं धर्ममध्याचरेनविति" निषेधाच. स्नातक, आचार्य, राजा, मित्र, जमाइ इनको मधुपर्क जा प्रतिवर्ष करणी तथा ऋत्विजकी प्रत्येक यझमें करणी ऐले लिखके आश्वलायन सूत्रका वचन दाखल करा है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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