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________________ प्रथमखंम. २१ राजाश्वमेधेन यजेत ९-९-१ २२ पंचशारदीये पशुबन्धयजेत ९-१२-१० ॥ लाट्यायन सूत्रका अर्थ ॥ १ बलदका यज्ञ करतां बलदका मंत्र पढना. २ सांडका यज्ञ करतां सांडका मंत्र पढना. ३ बकरेका यज्ञ करतां बकरेका मंत्र पडना. ४ नेडका यज्ञ करतां रुका मंत्र पढना. ५ कलजेका होम करतां नपस्थान मंत्र पढना. ६' यज्ञ दीक्षा लियां पीछे शूइसें न बोलना. ७ गाय बांधने की जगें यज्ञ करे पशु वृद्धि होती है. ८ स्मशानमें करनेसें शत्रुका नाश होता है.. ru पशुका कालेजा होमें पीछे वतु कराना.. १० एक मास पीछे पशु करना. ११ पशु उपर पाणी बांटना. १२ अमिषोम देवकों कलेजेका होम करतां पाणी बांटना. १३ ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य ये तीनो समान है ऐसा शांमिय श्राचार्यनें कहा है. YU १४ सगा मित्र येनि समान है ऐसा धानंजप्य आचार्यने कहा है. १५ स्वदेशीजन समान है ऐसा शांमिष्य श्राचार्यनें कहा है. १६ यज्ञ करतां यजमान मरे जाये तो तिसके उपर यज्ञके यत्र गेर देनो.. १७ तिसके सुखमें मुवर्ण डालके गायका कलेजा काढके ति सके मुख पर गेरणा. इस गायका नाम अनुस्तरणी है. १० वाणीयाने गोसव करणा. 12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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