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________________ ЯЯ अज्ञानतिमिरनास्कर. ५ फेर वो सांढ कबरे रंगका चाहिये. ६ काला जामनके रंग समान होवे तोनी ठीक है. ७ सही तथा जवका पाणीसें सांढ नपर अनिषेक करणा. मस्तकसें पूंजतक. ए महादेवके ग्रहण करणे योग्य हो यह मंत्र पढना. १० अन्य पशुका प्रोक्षण तथा वध अन्य ठिकाणे कहा है तिस मुजब करना. ११ पलासकी लकमीके वासणमें तिसका कालेजा रखके होम करना. १५ होम करना सो शिवके बारां नाम लेके करना. १३ इस रीतीसें शुलगव नामक यज्ञ करे तिसको धान्य, कीर्ति, पुण्य, पुत्र, पशु, समृद्धि, आयुष्य, वृद्धि तथा यश प्राप्त होता है. १४ उक्त प्रमाणे यज्ञ करके फिरसे यज्ञ करने वास्ते दूजा सांढ अर्चके गेम देना. ऋग्वेदकी दो ऋचा निचे लिखी है । सो आश्वलायन गृह्यसूत्रके प्रथमाध्यायके प्रथम कांडिकाके पांचमें सूत्रमें दाखल करा दूा है सो आगे लिखा जाता है. विश्वमना ऋषिः इंद्रोदेवता ॥ अगोरुधाय गविषेद्युक्षायदस्म्यं वचः घृतात्स्वादियो मधुनश्च वोचते ॥ ऋग्वेद अष्टक ६ अध्याय २ वर्ग २० ॥ भारद्वाज ऋषिः अग्नि देवता॥ आते अग्नऋचाह विद्वदातष्टंभरामसी ॥ ते ते भवंतक्षण ऋषभा सोवशाउत ।। ऋग्वेद । अष्टक ४ अध्याय ५ वर्ग १० ऋच ७ आश्वलायन ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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