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________________ अज्ञानतिमिरनास्कर, जामदग्नसें प्रकृति अटी होती है. आप षडहयज्ञ करनेसे प्रतिष्टा मिलती है, आण संनार्य यज्ञ करनेसे आयुष्य प्राप्ति होती है. आo संवत्सर प्रवल्ह करनेसे लक्ष्मी मिलती है. आप गवामयन यज्ञ करनेसे सर्व कामना सिह होती है. आप इसके विना चार अध्याय गृहसूत्रके है. तिनमें गृहस्थ का धर्म लिखा है. गृह्यम और श्रौतमें इतनाही फरक है कि जो ब्राह्मण एक अग्निको कुंम जिसका नाम स्मार्ताग्नि जिसमें रखते है तिसका नाम गृहस्थ । यह अग्नि लग्न विवाहके दिनमें नत्पन्न होती है. और जो गृहस्थ तीन अग्नि नुत्पन्न करके अग्निहोत्र लेता है, तिसकों श्रोताग्नि कहते है. तिनका नाम. दक्षिणाग्नि--गार्हस्पत्य-आहवनीय. ऐसे अग्निहोत्रीकों यज्ञ करनेका अधिकार है। तिस अग्नि. होत्रीके कर्म श्रौतसूत्रमें वर्णन करे है. और गृहस्थाश्रमीका ध. र्म गृह्यसूत्रमें है। बहुते गृहस्थ हालमें अग्नि नपासना करने वास्ते राखते नही है । तिस बावतका प्रायश्चित करते है । तिन दिन तक जो गृहस्थ अग्नि न राखे सो शूर हो जाता है ऐसें धर्मशास्त्रमें कहा है. गृहस्थाश्रम विवाहदिनमें शुरु होता है. और लाम दुवा पीछे प्रजा नत्पन्न होती है तिस प्रजाके ब्राह्मण बनाने वास्ते सोलों संस्कार लिखे है. गृह्यसूत्रमें येह संस्कार लिखे हुए है, तिनका नाम ॥ गन्नाधान-पुंसवन-जातकर्म-अन्नप्राशन-चूमा-नपनयन -विवाह-अंत्येष्टि-इत्यादि लिखे है॥ आश्वलायन आचार्यका सूत्र केवल ऋग्वेदका सार है, ऐसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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