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________________ ४१६ श्री आत्मप्रबोध. तेथी अहिं अगुरु बघुपर्णो केम कहेवाय ?" तेना उत्तरमा कहे के, “जेम उच्च गोत्रवाळा पुरुषना आववाथ। आसन उपरथी उठवू, आसन देवं अने पूजा करवी वगेरे थाय छे, अने नीच गोत्रवाळा पुरुषना आववाथी तेम यतुं नथी, तेने तो दूरज रखाय , तेवी रीते अहिं सिद्ध नगवानोना व्यवहारमा यतुं नयी; माटे तेत्रोमां अगुरु बधुपाणु डे, ते युक्तज जे. ७ अंतराय कर्मना क्षययी सिफ नगवानोमां अनंतवीर्यपाj , तेथी लोकवर्ती अनंत पदार्थोनुं समकाले झान तेमने संजवे छे. ७ वळी ते सिद्ध नगवानोने अनंत सुखपणुं कहेवाय , ते वेदनीक कर्मना विनाशयी उत्पन्न थयु एवं अव्यावाध स्वरूप अथवा सम्यक्त्व स्वरूप समजबु. आ प्रमाणे श्री सिक नगवान्ना गुणोनुं वर्णन करवामां आवे ने तेमना सकळ मंगळमय परमात्म स्वरूप वर्णन करतां कहे छ के," इत्यं स्वरूपं परमात्मरूपं, निधाय चित्ते निरवद्यवृत्तेः। सध्यानरंगात्कृतशुद्धिसंगा नजन्तु सिम्मिं सुधियः समृधिम् ।। ___ " ए प्रकारे निर्दोष वृत्तिथी चित्तनी अंदर श्री परमात्मानुं स्वरूप धारण करी शुभ ध्यानना संगथी जेमणे नाव शुधि प्राप्त करती ने, एवा सद्बुद्धिवाळा जनो सिधिरुपी समृधिने नजो." १ " जगवत्समयोक्तीना-मनुसारेणैष वर्णितोऽस्ति मया । परमात्मत्व विचारः शुषः स्वपरबोधकृते " ॥२॥ " श्री जिनराजना आगमना वचनोने अनुसारे आ शुछ परमात्म तत्त्वनो विचार ( स्वरूप) में पोताना अने पर (जव्यजीवो )ना वोधने माटे वर्णन करेन बे. ولی وال جنوری ملتی ہے اسلی श्री जिननक्तिसूरिना चरणकमळना आराधनमां उमरतुट्य एवा श्री जिनवाजसूरिए प्रकाशित करेला आ आत्मप्रबोध ग्रंथने विषे परमात्म स्वरूप वर्णन नामे चोथो प्रकाश संपूर्ण थयो. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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