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________________ ३एन श्री आत्मप्रबोध. एवो जे पाठ , तेनों अर्थ आ प्रमाणे डे " जेमणे स्नान कर्या पछी बलि कर्म करेलु छे." एटले पोताना गृह चैत्यना अरिहंत देवनी प्रतिमानी जेमणे पूजा करेली. ___ अहीं कुलदेवीनी पूजा करेली , एवो अर्थ न करवो, कारण के, सम्यक्त्व अंगीकार करती वखते जिन जगवान्थी व्यतिरिक्त एवा देवोने वंदन पूजन आदि करवानो त्याग करवामां आव्यो बे, तेम वली तुंगिया नगरीमां रहेनारा श्रावकोनुं सूत्रमा जे वर्णन करवामां आवे ने तेमां तेथी विरोध आवे . तेना वर्णननो पाठ श्री जगवती सूत्रना बीजा शतकमां पांचमां उद्देशमा आ प्रमाणे . " अढादित्ता इत्यादि यावत् असहिजदेवासुरनागसुवसाजरकस किंनर किंपुरिस गरल गंधव्व महोरगादिएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणतिव्कमणिज्जा निग्गंथे पावयणे निस्संकिया निकंखिया निव्वतिगिच्छा लघका गहियठा पुच्छियठा ” इत्यादि ॥ तेमां असहिजत्ति ए पदनो एवो अर्थ ने के, जेने परनी-बीजानी सहाय नथी एवा अर्थात् आपत्तिने विषे पण देवादिकनी सहायताने नहीं इबनारा-पोताना करेला कर्म पोतानेज जोगववा पो छे, एम मानी अदीन मनोवृत्तिवाना आवा विशेषण बाला श्रावको बीजा मिथ्यादृष्टि देवनी पूजा केम करे ? आ प्रत्यक्ष विरोध आवे , तेथी नत्तम बुझिवाना पुरुषोए तेनो सम्यक् प्रकारे विचार करवो योग्य छे. श्री नव्वाइ उपांग सूत्रने विषे अंब परिव्राजकना अधिकारमा श्री जिन चैत्योर्नु साक्षात् वंदनिकपणुं कहेलै बे, ते सूत्र आ प्रमाणे - “ अंबमस्सणं परिव्वायगस्त णो कप्पंति अणन ढिएवा अणउच्छियदेवणयाणिवा अणनच्छिय परिग्गहियाणि अरिहंतचेहयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा जावपज्जु वा Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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