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श्री आत्मप्रबोध.
इरियासमिश्पभई, नियसुखायारसेवणे निनणा। जे सुयनिहिणो समणा तेहिं श्मा नूसिया पुहवी" ॥२॥
"जेत्रो नेत्रोनी चंचलताथी रहित छे, जेमना मुख शांत छ, जेमना गुणरत्न प्रसिध , जेत्रो कामना जितनारा , जेमना वचन कोमळ छे जेमनी नजीक सर्व प्रकारे यतना जे, जेो या समिति प्रमुख पोताना शुछ आचारने सेववामां निपुण , अने जेओ श्रुतना निधान रूप में, एवा मुनिग्रोथी आ पृथ्वी विभूषित जे. १-२
सिद्धांतोक्त साधु गुणवर्णन. " जाइसंपन्ना, कुत्रसंपन्ना, बनसंपन्ना, रूवसंपन्ना विषय संपन्ना, णाणसंपन्ना, सणसंपन्ना, चरित्तसंपन्ना, सजासंपन्ना, बाघवसंपन्ना, मिनमदवसंपन्ना, पगभद्दया, पगविणीया, ओयंसि, तेयंसि, वच्चंसि, जसंसि, जियकोहा, जियमाणा, जियमाया, जियलोहा, जियाणदा, जितेंदिया, जियपरिसहा, जिवियासमरणनयविप्पमुक्का, नग्गतवा, घोर तवा, दित्ततवा, घोरबनचेरवासिणो, बहुसुया, पंचसमिहिंसमिआ, तिहिं गुत्तिहिं गुत्ता, अकिंचणा, निम्ममा, निरहंकारा, पुकरंव अलेवा, संखोश्व निरंजणा, गयएंव निरासया, वाउव्व अप्पडिबघा, कुम्मो श्व गुत्तेंदिया, विहंगुव्व विप्पमुक्का, नारंडव्व अपमत्ता, धरणिव्व सव्वंसहा, किं बहुणा ! एगंतपरोवरायनिरया, जिणवयणोवदेसण कुसता, जावकुत्तियावणनूयाए रिसा जिणाणाराहगा समणा जगवंतो नियचरणेहिं महीयलं पवित्तयंतो विहरंतित्ति" ॥
" जाति, कुल, बन, रूप, विनय, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, बन्जा, बाघ
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