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________________ ५७६ श्री आत्मबोध. नवमा दशमा श्रावकने उपसर्गो थया नथी. बाकीना व श्रावकोने उपसर्गो rar a. पहेला श्रावकने श्री गौतमस्वामी साथे प्रश्नोत्तर थया ने बठा श्राant देवनी साये धर्मचर्चा थड़ हती. या दश श्रावकोना बार व्रत उपरना दृष्टांतो श्री उपासकदशांग सूत्र अनुसारे लखेला े. या वृत्तांतो सांजळी वीजा पण सम्यग्दृष्टि जीवोए एवी रीते वार व्रतो पालवा तत्पर यवं. श्रावकनी गीयर प्रतिमानुं स्वरूप. 66 दंसण वय सामान्य, पोसह परिमा" अन सचित्ते । आरंभ पेस उद्दिट्ट, वज्जए" सम ७ भूए य ॥ १ ॥ 55 ६ “ १ दर्शन – सम्यक्त्व प्रतिमा, २ व्रत - अणुत्रतादि, २ सामायि क, ४ पोषध, ए कायोत्सर्ग प्रतिमा - पांच प्रतिमाने विषे विधान रुपे करीने अभिग्रह विशेष रूप प्रतिमा जाणवी, तिमा त्याग रुपे जाणवी, आरंभ - पोतानी प्रेप्य, एटले वीजाने पापकर्मनो व्यापार कराववो, १० उद्दिष्ट - एटले ते ते श्राand उद्देशाने सचेतन अथवा अचेतन अथवा पक्व आहारादिक ते नो वर्जक तथा आमी यदि प्रतिमानो धारक, ११ श्रमणचूत एटले साधुतुल्य- ए गीवार प्रतिमा कहेवाय बे. आ गाथार्थ ययो. दवे जावार्थ -ग्रा प्रमाणे बे. १ एक मास पर्यंत शंकादि दोष तथा राजानियोग आदि उ आगार वर्जितपणे करी केवल शुद्ध सम्यक्त्वने धारण करवाथी पेहेली प्रतिमा थाय ते. ब्रह्म, ७ सचित्त- - ए प्रजाते पापक्रिया करवी ते, द वे मास पर्यंत प्रतिचार रहित ने अपवाद वर्जित व्रतोने ने सFarad धारण करवाथी बीजी प्रतिमा थाय बे. Jain Education International ३ ऋण मास पर्यंत सम्यक्त्वाने व्रत सहित प्रतिदिन उनय संध्या सामायिक करवाथी त्रीजी प्रतिमा थाय बे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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