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________________ श्री आत्मबोध. प्रश्न करने के, ते देशविरति सर्वविरति शी रीत थाय ? देशे करीने एटले देश दृष्टां करीने. जेम चंद्रमुखी स्त्री, समुद्र जं तळाव; नहीं तो साधु ने श्रावक बच्चे मोटो अंतर जे जे तं देख के बे. उत्कृष्ट द्वादशांगीना - ज्यासी ते साधु ने श्रावक तो षट् जीवनिकाय नामना दश वैकालिकना - ध्ययन सुधीनो अन्यासी होय छे. साधु उत्कृष्टपणे सर्वार्थसिद्धि विमानम उपजे छे अने श्रावक बारमा देवलोक सुधी उपने छे. साधुओंने काल धर्म पाम्या पी देवगति ने मोक्षगति ए वे गतिम्रो ने श्रावकने एकली देवगति बे. वली साधु फक्त संज्वलनना चार कषायवाला होय वे अथवा निष्कषायी प होय . अने श्रावक तो आठ पायवाला एटले प्रत्याख्यानी ने संज्वलनी होय बे. साधुओ एको साये पंच महाव्रतना अंग कारी के अने श्रावक तो थोडा अथवा समस्तना पण इच्छा प्रमाणे अंग काररी बे. साधुस्रोने एक वार अंगीकार करेलुं सामायिक व्रत जावजीव पर्यंत रहे डे अन श्रावकने तो ते सामायिक व्रत वारंवार अंगीकार कराय बे साधुने एक व्रतनी जंग थतां सर्व व्रतनो जंग थाय छे, कारणकं मांहोमांह) तनुं सापेक्षपणां वे अपने श्रावकन तेम नथी. तेथी आ सामायिक क्यां कर ? एवंी शंका यतां तेनो उत्तर या प्रमाणे बे २३६ 66 46 'मुनेः समीपे जिनमंदीरे वा, गृहेऽथवा यत्र निराकुलः स्यात् । सामायिकं तत्र करोति गेही, सुगुप्ति युक्तः समितश्च सम्यक् " ॥ १ ॥ 'गृहस्थ मुनिनी समीप, अथवा जिनमंदिरमां, घेर अथवा ज्यां निराकुलपणे रहेवाय त्यां त्रण गुप्ति ने पांच समिति साये सामायिक करे छे. " १ सामायिक करनारे जांक जिनमंदिरमां सामायिक कर योग्य बे कारणके, मां सम्प्रकारे समाधि प्राप्त थाय बे, माटे तेनुं ग्रहण प्रथम करं जोइए. परंतु मुनिनी समीपे सामायिक करवानुं प्रथम कहल बे; तेनुं कारण एबे के मुनिनी पासे धर्म वार्ता वगेरे सांनळवायी विशेष ज्ञान याय के माटे तेनुं प्रथम ग्रहण करेल . वली जे गृहादिकने विषे सामायिक करे तेणे पण समिति तथा गुप्ति सहित गुरु समीपे आवीने ते गुरुनी साक्षी पूर्वक सामायिक उच्चरे. आविधि अपऋद्धि श्रावकने माटे छे. बहु ऋदिवाला श्रावकनो विधि तो या प्रमाणे जे. जे महर्षिक राजादि बे, ते प्रथम साधुनी पांसे आवी ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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