SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय प्रकाश. १९७ राखीश; परंतु मने स्वदेश जवानी आज्ञा आपो. " पबी ससराए कहुं, “त्यारे खुशीथी जाओ. मार्गमां तमारुं कड्याण थाओ. " ससरानी आज्ञा थतां बुद्धिदास पोतानी स्त्री सुनप्रा साथे रथमां बेसी मार्गे चाल्यो अने अनुक्रमे ते चंपा - नगरी आवी पोहोंच्यो. पोतानी स्त्री सुनाने जुदा वासगृहमां राखी पोते माता पिताने घेर गयो, अने तेमने आनंद मध्यो. तेथे पोतानो सर्व वृत्तांत माता पिताने जणाव्या. पी पोताना कार्यमां तत्पर यह पोताने घेर रहेवा लाग्यो. सुभद्रा जुदा घरमा रही निष्कपट वृत्ति व अरिहंत प्रजुनो धर्म सेवती हती; परंतु तेीनी सासू ने नणंद तेलीनां बिडो जोयां करती हती. एक वखते एवं बन्धुं के, कोइ जैन मुनि निकाने माटे सुनाना वासगृहमां आवी चाव्या गया. ते जोइ ते बुद्धिदासने तेनी माता ने व्हेने कां के, "जाइ, तारी बहु कोइ जैन मुनिनी साये रमे बे. " बुद्धिदास बोढ्यो, “ तमारे एवी जुठी बात कहेवी नहीं; कारण के, मारी स्त्री कुलीन, जैन धर्ममां रक्त ने सती बे. ते कदि पण कुशीला थायन नहीं. तमे धर्मनी इर्ष्याथी वो मिथ्या आरोप चडावी कहो बो. तमारे आवं अघटित न बोलवं जोड़ए, " बुद्धिदासनां आवां वचनो सांजली ते सुनानी सासू ने नींद ते सुनाना विशेष बिडो जोवा लाग्या. एक वखते कोइ जैन मुनि सुनाने घेर निक्षा सेवाने आव्या. तेज वखते पवनवतेमना नेत्रमां जमतं तरां परुयुं. ते साधुमां जिनकरूप पणुं हतुं, एटले ते शरोर संस्कारथ विमुख हता. प्रार्थी तेमणे ते तरणांने नेत्रमाथी दूर कर्यु नहीं. समये सुजका दिक्षा आपना यावी. ते वखते तेलीना जोवामां आव्यु के मुनिना नेयांक पीका थाय छे. आथी तेलीए चालाकी थी जिल्हाना अग्र जागयी ते दुषित नेत्रगांयी तरणुं बही बंधुं तेम करतां तेएना कपाळमां करेलुं कुंकुमपि ते मुनिना अलाट उपर चोटी गयुं मुनि निका लइ तणीना घरमांर्थ र नीकव्या, ते वखते बिष जोनारी तेलीनी सासू पाताना पुत्रने बोलावीत सुनिना ललाटतुं तिलक प्रत्यक्ष बताव्युं तेवी निशानी जोड़ बुद्धिदासे पोतानी मातानुं वचन कबुल कर्यु ने सुनाना शील विषे तेने शंका उत्पन्न थ. यारथी बुद्धिदास मुजधानी उपर विरक्त थर गयो. सती सुना पोताना पतिने पोतानी उपर निःस्नेह जाणी मनमां विचार करवा लागी. " अहा ! मारी उपर वृथा दोषारोप थयो. वल्ली मारा निमित्ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy