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________________ गुजरात की पावन भूमि में श्रद्धा और कला का अद्भुत समन्वय हआ है । तारंगा तीर्थ इसका जीवन्त प्रमाण है । शहरों की कोलाहल भरी जिंदगी से दूर शांत-नीरव वातावरण में पर्वतों की गोद में बसे इस तीर्थ में पहुंचते ही आत्मशांति की अनुभूति तो होती ही है, मंदिर की कलात्मकता को निरखकर दर्शक अंचभित भी रह जाता है । मंदिर के बाह्य भाग में खड़े होकर अगर चारों ओर नज़र दौड़ाई जाये तो पर्वतों का अनूठा सौंदर्य दिखाई देता है और अगर मंदिर के भीतर प्रवेश किया जाये, तो परमात्मा की दिव्य प्रतिमा मुंह बोलती नजर आती है। जैन-शास्त्रों में तारंगा के लिए 'तारउर', 'तारावर', 'तारणगिरी' आदि कई नाम उपलब्ध होते हैं। सं. १२४१ में आचार्य श्री सोमप्रभ सूरि द्वारा निर्मित कुमारपाल प्रतिबोध ग्रंथ में उल्लेख है कि राजा वत्सराय ने बप्पुटाचार्य की प्रेरणा से यहाँ श्रीसिद्धायिका देवी के मंदिर का निर्माण करवाया था। प्राप्त संदर्भो से ज्ञात होता है कि राजा कुमारपाल ने भी यहां सं. १२१२ में जिनालय का निर्माण करवाया मूलनायक तीर्थंकर श्री अजितनाथ था। MADRA तीर्थ में उपलब्ध शिलालेखों से ज्ञात होता है कि सं. १२८४ में संघपति वस्तुपाल ने आदिनाथ भगवान की दो प्रतिमाएं विराजमान की थी। यद्यपि ये दोनों ही प्रतिमाएं आज तीर्थ-क्षेत्र में उपलब्ध नहीं हैं, पर उत्कीर्ण शिलालेख वाले दोनों ही आसन मंदिर में आज भी उपलब्ध हैं। सं. १४७९ में ईडर के श्री गोविंद सृष्टि द्वारा तीर्थ के उद्धार का उल्लेख प्राप्त होता है । तीर्थ का अंतिम जीर्णोद्धार आचार्य श्री विजयसेन सूरि की प्रेरणा से हुआ। इसके अतिरिक्त इस मंदिर में अन्य भी कई लोगों ने गोखलों और प्रतिमाओं का निर्माण करवाया है। मूल मंदिर १४२ फुट ऊंचा, १५० फुट लम्बा और १०० फुट चौड़ा है। रंगमंडप की विशालता दर्शनीय है ।मंदिर में तीर्थंकर श्री अजितनाथ की पद्मासन में श्वेतवर्णीय प्रतिमा विराजमान है । २.७५ मीटर की यह प्राचीन प्रतिमा आज भी अपनी तेजोमय आभा बिखेर रही है। ___मूल मंदिर के दक्षिण दिशा में कोटि शिला है। यहाँ अनेक मुनियों ने आत्मसाधना कर मुक्ति पाई थी । मूल मंदिर के अतिरिक्त ४ श्वेताम्बर व५ दिगम्बर मंदिर हैं। यहाँ से लगभग एक किलोमीटर दूर मोक्षबारी ट्रॅक है, जहां तीर्थंकर श्री अजितनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यहाँ सं. १२५५ में निर्मापित भगवान की प्रतिमा का भव्य परिकर है। मंदिर का मुखभाग 82 For Private Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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