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________________ संघ द्वारा प्रतिमा को पहले ही स्थानान्तरित कर दिया गया था। सं. १६५६ में बादशाह शाहजहां ने नगर-सेठ शांतिप्रसाद को फरमान जारी कर तीर्थ के निर्माण की स्वीकृति प्रदान की। सं. १७६० में आचार्य विजयरत्न सूरि के हस्ते पुन: प्रतिष्ठा होने का उल्लेख मिलता VOYOYAL शंखेश्वर तीर्थ के विशाल परकोटे में मल मंदिर के अतिरिक्त कई देवरियां निर्मित हैं। इसी कारण इसे बावन जिनालय भी कहा जाता है। मंदिर के अंदर-बाहर कई मंदिर हैं, जिनमें आगम मंदिर, १०८ पार्श्वनाथ जिनालय, दादाबाड़ी इत्यादि के नाम उल्लेखनीय मूल तीर्थ-मंदिर विशाल परकोटे के मध्य भाग में ऐसा लगता है मानो यह धरती पर अवतरित हआ देव-विमान हो । शिखरों पर लगी छोटी-मोटी घंटियां हवा के झौंकों के साथ स्वत: डोलायमान हो उठती हैं । घंटियों का निनाद संगीत का काम करते हुए श्रद्धालुओं के हृदय को झंकृत कर देता है। शंखेश्वर तीर्थ सोयी मानवता को जागृति का संदेश देता है। जीवन की विपदाओं से छुटकारा पाने के लिए शंखेश्वर सर्व सुखों की खान है। मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ पार्श्वनाथ की मनोरम प्रतिमा द्वारपालिका 80 in Elound on temational For Prata Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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