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________________ देता है। मंदिरों की भव्यता और सुंदरता अपने आप में बेमिसाल है। मंदिरों का जैसा शिल्प और आकार शास्त्रीय परम्परानुसार मान्य है गिरनार पर्वत के मंदिरों को उसका आदर्श कहा जाना चाहिये। गुजरात के महान् धुरंधर शिल्पियों की शिल्पकला का यहां प्राचीन खजाना देखने को मिल जाता है। मंदिर को चाहे बाहर से देखा जाये, चाहे भीतर से श्रद्धा और कला दोनों ही अपने परिपूर्ण वैभव के साथ मुखरित हुई हैं। गिरनार-पर्वत भी विदेशी आक्रामकों से अछूता नहीं रहा है, लेकिन इसके बावजूद समय-समय पर अनेक सम्राटों तथा श्रेष्ठि श्रद्धालुओं ने तीर्थ के जीर्णोद्धार एवं विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। सं.६०९ में काश्मीर के श्रेष्ठि श्री अजितशाह तथा रत्नाशाह द्वारा तीर्थोद्धार किये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है । बारहवीं सदी में सिद्धराज के मंत्री श्री सज्जन शाह तथा प्रसिद्ध महामंत्री श्री वस्तुपाल-तेजपाल द्वारा जीर्णोद्धार होने का शिलालेख यहां उत्कीर्ण है। राजा मंडलिक ने तेरहवीं सदी में यहां स्वर्ण-पत्रों से मंडित मंदिर बनवाया था। चौदहवीं सदी में समरसिंह सोनी, सतरहवीं सदी में वर्धमान और पद्मसिंह ने तीर्थ का उद्धार करवाया। बीसवीं सदी में नरसी केशवजी द्वारा पुनरोद्धार का उल्लेख प्राप्त होता है। इनके अतिरिक्त भी कई ऐसे अनेक सम्राट-सामन्तों ने इस तीर्थ के विकास में अपनी अहं भूमिका निभायी है, जिनमें राजा संप्रति, राजा कुमारपाल, गिरनार : नेमि-राजुल का धाम मंदिर का मनोरम दृश्य मुक्ति के सोपान गिरनार की सर्वोच्च चोटी 64
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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