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________________ PRODKजरUSE HR ISHATRUINORATORTUNITIES 00.0000000000.00 MORE AAJDHERAIGHTNEEDS माDिEVE मंदिर के तोरणों में से एक हैं। कला के इस अनमोल खजाने को देखने के लिए अगर एक बार गर्दन ऊपर उठ जाये, तो वापस झुकने का नाम न ले। गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव के अमात्य वस्तुपाल एवं तेजपाल ने श्वेतवर्णीय संगमरमर से इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण करवाया था। तेजपाल के सुपुत्र लावण्यसिंह के नाम पर मंदिर का नामकरण लूणवसही हुआ। मंदिर में जैन-धर्म के बाईसवें तीर्थंकर करुणामूर्ति नेमिनाथ की श्यामवर्णीय कसौटी पत्थर की प्रतिमा विराजमान है । दर्शन मात्र से मनमोहित करने वाली इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. १२८७ चैत्र कृष्णा तृतीया को आचार्य श्री विजयसेनसूरि के कर कमलों से हुई थी । प्राप्त सन्दर्भो से पता चलता है कि मंदिर के निर्माण में १३ करोड़ से भी अधिक स्वर्णमुद्राएं व्यय हुई थीं। मंदिर का शिल्पलालित्य प्रसिद्ध शिल्पी सौमनदेव की प्रस्तुति माना जाता है। सं. १३६८ में अलाऊद्दीन खिलजी के सैन्य दल ने मंदिर के गर्भगृह एवं मंदिर के अन्य भाग को क्षतिग्रस्त करने का प्रयास किया था। सं. १३७८ में श्रेष्ठी चंडसिंह के पुत्र श्रेष्ठि ने जीर्णोद्धार करवाया। मनुष्य जाति के लिए अनुपम उपहार बने इस मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही मंदिर का भव्य एवं आकर्षक स्वरूप दिखाई देता है । विश्व प्रसिद्ध देरानी-जेठानी के गोखले इस मंदिर में निर्मित हैं । बाईं ओर के गोखले में भगवान आदिनाथ एवं दाईं ओर के गोखले में श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। देरानी-जेठानी दोनों का अनुपम प्रेम और शिल्पियों की बेजोड़ कला का परिणाम यह निकला कि दोनों ही देहरियां अपने आप में हू-ब-हू बनी हैं। इन देहरियों को देखने से यों लगता है, मानों शिल्पियों ने इन पत्थरों में प्राण फूंक दिए हैं। मंदिर के रंगमंडप में पहुंचने पर यहां की विस्मयकारी शिल्पकला की सुकोमलता, सुन्दरता और उत्कृष्टता की एक झलक हमें दिखाई देती है और कलाकारों की कला की एक अमिट छाप लोक हृदय में अंकित हो जाती है। गुम्बज के मध्य में लटकता कलापूर्ण 'झूमका' स्फटिक बिंदु जैसा प्रतीत होता है। मंदिर की छत पर जहाँ भी नजर डालें, तो लगता है, सचमुच, सब कुछ बेमिसाल है। यहाँ । प्रत्येक स्तम्भ पर विभिन्न वाहनों पर सोलह विद्या देवियों की खड़ी प्रतिमाएं हैं। रंगमंडप के चारों ओर बने तोरण इतने कलात्मक हैं कि दर्शक अभिभूत हो जाता है। रंगमंडप में दक्षिण की ओर दीवारों और छतों पर भगवान कृष्ण के जन्म का दृश्य-माता शयन अवस्था में, कारागृह, ग्वाल-बाल आदि नक्काशीयुक्त शिल्प कृतियां हैं । रंगमंडप के आगे नव चौकी है। यहां की ९ छतों में प्रत्येक में श्रेष्ठतम नक्काशी का आश्चर्यजनक शिल्प कार्य है । संगमरमर में ऐसे सुकुमार पुष्प-गुच्छ उभर कर आए हैं कि दर्शक पहले ही दर्शन में कह देता है-न भूतो न भविष्यति । _मंदिर की परिक्रमा में ५० देहरियां हैं, जिनके परिकर एवं गुम्बज में कला की लालित्यपूर्ण प्रस्तुति हुई है । देहरी १ से १० तक में क्रमश: अम्बिका देवी की प्रतिमा, पुष्प नर्तकियां, हंस के कलामक पट्ट और नेमत बारीक नक्काशी की: मंदिर का एक गुंबज Vyyyyyyy गुंबज में अवस्थित देव-नृत्यांगनाएं 56
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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