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________________ भगवान महावीर : ओसियां तीर्थ के अधिनायक विशिष्ट शिल्प-लालित्य के कारण ओसियां तीर्थ कलात्मक मंदिरों में सदैव चर्चित रहा है । कठोरतम पाषाणों में शिल्पांकित यहां की वस्तुकला तो विख्यात है ही, मंदिर की अपनी विशालता और उसका विशिष्ट सौन्दर्य भी उल्लेखनीय है। मंदिर के मूलनायक भगवान श्री महावीर का मंदिर राजस्थानी वास्तुकला की बेमिसाल प्रस्तुति है। मुख्य मंदिर और उसकी मूल देव कुलिकाएं प्रारम्भिक जैन स्थापत्य कला की संस्तुति करते हैं। इस तीर्थ से सम्बन्धित ऐतिहासिक तथ्यों का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि इसका प्राचीन नाम उपकेश पट्टण, उरकेश, नवनेरी आदि था। चौदहवीं शताब्दी के गच्छ पट्टावली से ज्ञात होता है कि विक्रम की चार शताब्दी पूर्व यहां आचार्य रत्नप्रभ सूरि का आगमन हुआ था एवं वहां के राजा उपलदेव एवं मंत्रि उहड़ ने उनसे प्रतिबोधित होकर जैन धर्म स्वीकार किया था। उल्लेख बताते हैं कि राजा उपलदेव ने तब इस मंदिर का निर्माण करवाया था नगर का क्षेत्रफल विस्तृत था और देश के समृद्धशाली नगरों में यह एक गिना जाता था। एक अन्य उल्लेख से ज्ञात होता है कि मंदिर में विराजमान मूलनायक श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई थी जिसकी प्रतिष्ठा सं. १०१७ माघ कृष्णा अष्टमी के दिन हुई थी। पुराविदों के अनुसार यहां की शिल्पकला लगभग ८वीं सदी की है। विविध संदर्भो के अध्ययन करने से ऐसा लगता है कि भगवान महावीर के निर्वाण के ७० वर्ष के पश्चात यह नगरी बस चुकी थी और इस मंदिर का निर्माण भी लगभग इसी काल में हुआ था एवं आठवीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार हुआ था। जैन समाज के प्रमुख अंग ओसवाल जाति का उद्भव भी ओसियां से ही हुआ था। पुरातत्त्वविदों के अनुसार ओसियां प्रारंभिक मध्ययुगीन कला और स्थापत्य का एक प्रसिद्ध स्थान है। यहां के कुछ मंदिर आठवीं सदी के निर्मित हैं एवं कुछ मंदिर लगभग ग्यारहवीं सदी के । तीर्थ के मूलनायक तीर्थंकर श्रीमहावीर हैं। उनकी पद्मासनस्थ,स्वर्ण वर्णीय ८० से.मी. की प्रतिमा यहां विराजित है। मूल मंदिर का निर्माण आठवीं सदी का मान्य है । मूल मंदिर उत्तराभिमुख है। द्वार मंडप के पास एक कलात्मक तोरण निर्मित है जिसका निर्माण सं. १०१६ में हुआ था। गर्भगृह के दोनों ओर तथा पीछे की मंदिर का भव्य शिखर
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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