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________________ खम्भों तोरणों- पुतलियों-नृत्य-नाटिकाओं के बेजोड़ नमूने उत्कीर्ण हैं। पश्चिमी राजस्थान की कला के जैसे शानदार नमूने यहां देखने को मिलते हैं, अन्यत्र कहीं नहीं हैं। यहां की कला निहारते ही दर्शकों को आबू-देलवाड़ा, राणकपुर, खजुराहो की याद आ जाती है और वे एकटक देखने के लिए विवश हो जाते हैं। जैसलमेर का पत्थर बड़ा कठोर माना जाता है, इसके बावजूद शिल्पियों ने जितनी बारीक खुदाई की है उसे शिल्पकला के इतिहास की एक मिसाल कहा जाना चाहिये । मंदिर के अतिरिक्त पटवों की हवेली, सालमसिंहजी की हवेली, नथमलजी की हवेली आदि इमारतों में की हुई नक्काशी भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। उनकी चर्चा तो विदेशों तक में हुई है। वस्तुतः जैसलमेर वह स्थान है, जहां दर्शकों को तथा पर्यटकों को ठौर-ठौर पर कला के जीते-जागते नमूने देखने को मिलते हैं। पीले पत्थरों से निर्मित मंदिरों के शिखर स्वर्ण-शिखर-सा आभास देते हैं। जैसलमेर के वृहत् ग्रन्थ भंडार में प्रथम दादा श्रीजिनदत्त सूरि की ८०० वर्ष प्राचीन चादर आदि भी सुरक्षित है, जिन के सन्दर्भ में यह मान्यता है कि दादा गुरुदेव की अंत्येष्टि के समय ये उपकरण अग्निसात् न हो पाये । श्रद्धालुओं के लिए यह एक महान् चमत्कार था। गुरु भक्तों ने इस चादर को ग्रन्थ-भंडार में सुरक्षित रखा, जिसे R STATNIE आठवीं सदी में निर्मित शालीनतम तोरण-द्वार 33 श्री लोद्रवा पार्श्वनाथ : सुंदर परिकरयुक्त जैसलमेर के पीले पत्थर में परिकरयुक्त एक प्रतिमा ONLY paryog
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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