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________________ रही । यहाँ के चमत्कार जनमानस में घर करते गये। देश-देशान्तर से श्रद्धालु आते रहे। समय-समय पर तीर्थ का नव-निर्माण और जीर्णोद्धार भी होता रहा है। सतरहवीं शताब्दी तक तीर्थ पर जैनों की विपुल जनसंख्या रही, किन्तु बाद में यहाँ के निवासी नाकोड़ा के समीपवर्ती अन्य गाँवों तथा नगरों में जाकर बस गये। भारत के कोने-कोने से प्रतिदिन सैकड़ों-हजारों यात्रिकों का यहां पहुँचना, अपने व्यवसाय तक में नाकोड़ा भैरव के नाम से भागीदारी रखना भैरव देव के प्रति अनन्य श्रद्धा का परिचायक है। पौष कृष्णा दशमी, जो भगवान पार्श्वनाथ की जन्म-तिथि है, को यहाँ विराट मेला आयोजित होता है। ___ मूल मंदिर के आस-पास छोटे-बड़े कई अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर के दायीं ओर सांवलिया पार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा विराजमान है। इस कक्ष में माँ सरस्वती, दादा जिनदत्त सूरि, आचार्य कीर्तिरत्नसूरि आदि की प्रतिमाएँ भी प्रतिष्ठित हैं। मूल मंदिर के पृष्ठ भाग में भगवान आदिनाथ का भव्य मंदिर है। इस मंदिर का परिकर अत्यन्त कलात्मक है। मूल मंदिर के बाहर दायीं ओर श्री शांतिनाथ भगवान का भव्य मंदिर निर्मित है, जहाँ भगवान श्री पार्श्वनाथ एवं शांतिनाथ के पूर्वभव संगमरमर पर उत्कीर्ण हैं । मूल मंदिर के बाहर भगवान श्री नेमिनाथ की दो प्राचीन प्रतिमाएं ध्यानस्थ मुद्रा में खड़ी हैं। प्रतिमा की सौम्य मुखाकृति को देखकर मन मंत्र-मुग्ध हो जाता है । इसी मंदिर में दादा जिनदत्त सूरि की प्राचीन चरण-पादुकाएं प्रतिष्ठित हैं। मंदिर के पृष्ठ भाग में छोटा, पर खूबसूरत सिद्धचक्र मंदिर है। यात्रियों की सुविधा के लिए विशाल धर्मशालाएं हैं, जहाँ हजारों यात्री एकमुश्त ठहर सकते हैं। विशाल भोजनशाला के अतिरिक्त तीर्थ के परिसर के बाहर महावीर कला मंदिर, दर्शकों का मन मोहता है, जहां भगवान् महावीर के जीवन से सम्बन्धित प्रेरणादायी एवं नयनाभिराम भव्य चित्रों का आकलन हुआ है। चमत्कार और संकट-मोचन के लिए नाकोड़ा तीर्थ जन-जन का आराध्य केन्द्र है। नाकोड़ा भगवान् का स्मरण जीवन-पथ को निर्बाध और प्रशस्त करता है। महावीर भवन में विराजित नयनाभिराम प्रभु महावीर भगवान नेमिनाथ : ललित मुखमुद्रा 24 Personal use only Jain Education International For Private www.jainelibrary.org
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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